कोंडागांव व कांकेर की पहाडिय़ों में उकेरी गई में 200 से ज्यादा शैल चित्रों का वैज्ञानिक शोध करवाया जाएगा

जगदलपुर। बस्तर संभाग के कोंडागांव और कांकेर में पाए गए शैल चित्रों से अब जिलों की पहचान हो इसको लेकर आने वाले दिनों में मानव विज्ञान संग्रहालय और राज्य स्तर के पुरातत्व विभाग द्वारा इसका संरक्षण किया जाएगा। गांव की पहाडिय़ों में बने शैल चित्र (रॉक पेंटिंग) आज भी गुमनामी में हैं। इसलिए इन शैल चित्रों का अब वैज्ञानिक शोध करवाया जाएगा। यह निर्णय कोलकाता के साल्ट लेक में हुए तीन दिवसीय सेमिनार के समापन मौके पर मानव वैज्ञानिकों ने कही।
वैज्ञानिकों ने कहा कि सबसे पहले इन शैल चित्रों की मार्किंग, फोटोग्राफी एवं हर शैल चित्र की डिटेल तैयार होगी, जिससे शैल चित्रों को जीपीएस से जोड़ा जा सके। मार्किंग से शैल चित्रों की सही संख्या का भी पता लग सकेगा। यह पहली बार हुआ जब बस्तर के शैल चित्रों की प्रदर्शनी बस्तर जिले के बाहर किसी दूसरे राज्य में मानव वैज्ञानिकों को दिखाई गई जिसे देश व विदेश के करीब 800 से अधिक मानव वैज्ञानिकों ने देखा। गौरतलब है कि बस्तर संभाग में शैल चित्रों की खोज करीब 1910 में शुरू हई थी। तब से लेकर अब तक करीब एक दर्जन मानव वैज्ञानिकों ने जगह-जगह शैल चित्रों की खोज करते हुए उसके संरक्षण की कोशिश की थी। लेकिन अब इस काम को बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। कोंडागांव और कांकेर में 200 से ज्यादा शैल चित्र मिल चुके हैं।
मानव विज्ञान संग्रहालय के अधिकारी पीयूश रंजन ने बताया कि जिस मकसद से शैल चित्रों को पहली बार सेमिनार में दिखाया गया वह सफल रहा है। बस्तर संभाग के कोंडागांव और कांकेर में मिले शैल चित्रों को अब आने वाले दिनों में नया जीवन मिलेगा। राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर संरक्षण के साथ ही जन जागरुकता लाई जाएगी।
उल्लेखनिय है कि बस्तर संभाग का प्रवेश द्वार कांकेर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर चारामा विकासखण्ड के ग्राम गोटीटोला के निकट पहाडिय़ों के बीच रामगुड़ा नामक विशाल वृत्ताकार शैलखण्ड में शैलचित्र उकेरी गई हैं। यह शैलचित्र कितनी प्राचीन हैं, यह पुरातात्विक शोध एवं अन्वेषण का विषय है, किन्तु ग्रामीणों को कहना है कि ये अति प्राचीन आकृतियां हैं, जो हजारो साल पुरानी है। इन चित्रों के रंग प्राकृतिक हैं, जो हजारों वर्षों के बाद भी फीके नहीं पड़े हैं। हालांकि यह संभव है कि प्रागैतिहासिक मानवों की कल्पना का परिणाम हो, लेकिन इस विषय पर और अधिक शोध की आवश्यकता है।
