बिन विश्वास भक्ति संभव नहीं,और जीवन में सफल भी नहीं हो सकोगे – रमेश भाई ओझा
रायपुर। इस संसार में सिवाय परमात्मा के और कुछ नहीं हैं, लेकिन अज्ञानरूपी अंधकार के चलते जब तक जीव भास रहा है, भय बने रहता है। अशांति भी रहेगी और जब तक अशांति हैं सुख नहीं हो सकता। भागवत संसार के भय को मिटाने वाले हैं, भक्ति को बढ़ाने वाले हैं। जिसने तत्व को जान लिया-ज्ञान हो गया और ज्ञान से विवेक आ गया तो भय भी मिट जायेगा। बिन विश्वास भक्ति संभव नहीं। अपने आप को भगवान के प्रति समर्पित कर दो। नेत्र और श्रोत ऐसे दो प्रमुख द्वार हैं जिससे परमात्मा हममें प्रवेश करते हैं। श्रीमद्भागवत में जो 12 स्कंद हैं वही भगवान के 12 अंग है। संसार में सुख दिखाई देता है, होता नहीं है। आनंद तुम्हारे अंदर है बाहर क्यो खोजते हो? जिसे तुमने सुख माना है यदि वही सुख होता तो अब क्यो रो रहे हो?
जैनम मानस भवन में श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन श्री रमेशभाई ओझा ने बताया कि वेद व्यास जी ने श्रीमद्भागवत को सूर्य और दीपक दोनों की उपमा दी है। दिन में जिस प्रकार सूर्य प्रकाश आलोकित करते हैं वैसे ही रात में दीपक भी अपना कार्य दायित्व निभाते हैं। भा का अर्थ दीप्ति अर्थात प्रकाश है। संसार जब तक मोह निशा में सोए रहता है तब तक स्वपन देखता है और जैसे ही सूरज निकलता है तो लोग जाग जाते हैं और मोह रात्रि समाप्त हो जाती है। रात में जिस प्रकार रास्ते में पड़ी रस्सी का सर्प होने का भास होता है,लेकिन जैसे ही कोई प्रकाश पड़ता है पता चलता है कि वह रस्सी है तो भ्रमरूपी भय मिट जाता है। ठीक उसी प्रकार जब तक अज्ञान के अंधकार के चलते संसार भास रहा है तब तक भय बने रहेगा। जीवन अशांत रहेगा और सुख भी नहीं मिलेगा। भले ही महलों में रहते हो जब तक जीवन में शांति नहीं हैं सुखी भी नहीं हो सकते। इसलिए कहा गया है श्रीमद्भागवत भक्ति को बढ़ाने वाला, भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने वाला और संसार से भय को मिटाने वाला है।
वेद संवत है भागवत नाम का पुराण। जिसमें वेद संबंधित बात है उसी को मौलिक कहेंगे। मनोरंजन कराने वाली कथाओं से प्रकाश नहीं होगा। पुरातन होते हुए भी यह पुराण नूतन है,जिस प्रकार गंगा का पानी कभी पुरानी नहीं होती है। भले ही देश काल के संदर्भ पुराण वर्तमान की चर्चा कराता है। आचार्यों का आधार लेकर जो इसका आनंद उठाता है, इससे सुंदर ग्रंथ कोई और हो ही नहीं सकता। श्रीमद्भागवत गं्रथों में राजा है, पाप रूपी मृग भागवत कथा सुनकर भाग जाते हैं। आदिनारायण भगवान ने ब्रम्हाजी, ब्रम्हाजी ने नारद, नारद ने वेदव्यास और वेदव्यास ने इसे विस्तारित करते हुए सुकदेव और सुकदेव ने राजा परिक्षित और आखिर में उन्होने सप्तऋशियों को भागवत की कथा सुनायी है।
नेत्र और श्रोत से दो प्रमुख द्वार हैं जिससे परमात्मा हममें प्रवेश करते हैं। पाप और पुण्य का प्रवेश यहीं से होता है। अच्छा और बुरा इसी से सुनते और देखते हैं। परमात्मा भी इन्ही दोनों द्वार से प्रवेश करते हैं। इसलिए कल्याण कार्य हो वही सुने और वही देखें। मंदिर में जाओ दर्शन करो, कथा में जाओ श्रवण करो।
बिन विश्वास भक्ति संभव नहीं
श्री ओझा ने बताया कि बिन विश्वास भक्ति संभव नहीं है। विश्वास करो अपने मां-बाप, भाई-बहन, गुरु, अपनी टीम और ईश्वर पर जब तक स्वंय में, अपने आप में और ईश्वर में विश्वास नहीं करेंगे जीवन में कभी सफल नहीं हो सकेंगे। विश्वास के यही तीन प्रकार है। स्वंय भगवान राम ने कहा है जब तक आप भगवान शिव की भक्ति नहीं करेंगे मुझे प्राप्त नहीं कर सकते। शिव समान कोई वैष्णव श्रेष्ठ नही ठीक उसी प्रकार विष्णु के समान कोई शेव श्रेष्ठ नहीं, जैसे नदियों में गंगा व पुराणों में भागवत श्रेष्ठ है।
भक्ति प्रसंग पर झूमे श्रद्धालु
श्री रमेश भाई ओझा कथा के बीच-बीच में प्रसंगवश भक्ति गीतों की प्रस्तुति भी देते हैं.संगीतमय उनकी टीम ने आज जब उनके साथ सुर मिलाया कि…देना हो तो दीजिए-जनम जनम का साथ,मेरे सिर पर रख दे गिरधारी-अपने ये दोनों हाथ, चाहे जैसे हो रख बनवारी, ओ मेरे गिरधारी..जय हो। राधे कृष्ण, राधे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, राधे श्याम-राधे श्याम..श्याम श्याम राधे राधे। पूरा कथा स्थल इस तरह भक्तिमय हो गया कि हर कोई थिरकने लगे।