राम जब आधार होंगे तो जीवन ओर जन्म दोनों धन्य हो जाएगा – मैथिलीशरण भाई जी
रायपुर। जीवन में जो समय मिला है उसका सदुपयोग करो, दूसरे के गुण और दोष देखने के चक्कर में मत पड़ो। नहीं तो दुर्भाग्य आ जाएगा यह ध्यान रखना। उसका कारण क्या है जो समय मिला है उसका हर क्षण भगवत कथा, सेवा और प्रेम में लगा दो। सेवा करते रहना चाहिए कभी उसे दिखाना नहीं चाहिए। आधार केवल राम होना चाहिए, राम जब आधार होंगे तो जीवन ओर जन्म दोनों धन्य हो जाएगा। यदि सत्संग से हमें जीवन में कुछ न मिले तो सत्संग की कोई आवश्यकता नही है।
मैक कॉलेज आडिटोरियम समता कालोनी में कथा सत्संग के दौरान श्री मैथिलीशरण भाई जी ने सीता जी के प्रसंगों को उद्धृत करते हुए बताया कि पार्वती जी की वंदना करते समय मानस में यह कहा गया है कि क्या आप हिमायल की पुत्री है, शंकर जी की प्रिया है, गणेश और कार्तिक की माँ है, लेकिन सीता जी की कृपा के बगैर निर्मल मति की प्राप्ति नहीं हो सकती है। मति या बुद्धि केवल कहें जो रावण के पास जितनी बुद्धि है उतनी बुद्धि तो उस काल में किसी के पास नहीं थी जिसको सारे वेद कंठस्थ है। कंठस्थ कर लेना अलग बात है और हृदयस्थ कर लेना अलग। किसी की स्मरण शक्ति बहुत अच्छी हो सकती है, उसको अनेक ग्रंथ याद हो सकते है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आपको याद कितना है महत्वपूर्ण यह है कि धारण कितना किया है और जिसने धारण कर लिया तो समझो धन्य हो गया। हनुमान जी महाराज ने धारण कर लिया और रावण धरण नहीं कर पाया, यही मति और सुमति है। हनुमानजी जब लंका में जाते है तो जिज्ञासा रहता है रावण को कि तुमने किसके बल से इतना पराक्रम किया। जो भी व्यक्ति करता है उसके मूल में केवन भगवान की शक्ति रहती है। हनुमान जी महाराज ने वही बात रावण को बताई। जिसकी सुमति है वो मति वाले को सुमति देना चाहता है। समुद्र के दो भाग है जो इस पार वेद पक्ष है और उस पार लोक पक्ष है,और देखें भगवान राम दोनों पक्षो को कैसे मिलाते है यह जानना बहुत जरुरी है।
भाईजी ने कहा कि यदि सत्संग से हमें जीवन में कुछ न मिले तो सत्संग की कोई आवश्यकता नही है। सत्संग की आवश्यकता इसलिए है कि रामायण की एक पंक्ति पढऩे के बाद आपको रुकना पड़ेगा, इसलिए हम सब श्रोताओं और बच्चों से खास तौर पर कहते है कि यदि जो लोग हमसे कदाचित दीक्षा लेते है या पूछते है हम उनसे कह देते है कम से कम एक दोहा, ज्यादा से ज्यादा पांच दोहे का पाठ घर में जरुर करना। पांच दोहे से ज्यादा करोगे नहीं और एक दोहे से कुछ होता नही है, इसलिए हम एक से पांच की बात कहते है। सफेद चादर ओढऩा अच्छी बात नही है, रंगीन चादर ओढऩा चाहिए। इसलिए हमें जागते रहना चाहिए, जब कथा में आते है तो सुनने के लिए आते है न की सोने के लिए इसलिए मैं मंच से कह रहा हूं कि कथा शुरु करने से पहले सोने वाले व्यक्ति के ऊपर वे चादर ओढ़ाकर कथा शुरु करेंगे। दरअसल हमारी कथा में कॉपी-पेस्ट नहीं होता है, इसलिए हमको याद की हुई बात नहीं कहते है। सुबह चार बजे मत उठिए, जब तक आपकी नींद पूरी नहीं हो जाती तब तक सोना चाहिए। जब सीता जी गंगा प्रवाह की बातें कर रही थी और केंवट नांव में बैठा था, जितनी देर में सीताजी पूजन कर रही थीं उतनी देर में भगवान राम ने उस समय का सदुपयोग किया।
जो व्यक्ति यह कहता है कि हमें सदुपयोग करने का समय नहीं मिलता है वह व्यक्ति अनिभिज्ञ है ,ज्ञानी नहीं। रामकिंकर जी महाराज से मिली सीख को लेकर भाई ने एक गंभीर बात कही कि जो समय मिला है उसका सदुपयोग करो, दूसरे के गुण और दूसरे के दोष देखने के चक्कर में मत पड़ो। दुर्भाग्य आ जाएगा यह ध्यान रखना। उसका कारण क्या है जो समय मिला है उसका हर क्षण भगवत कथा, सेवा और प्रेम में लगा दो। इसलिए भगवान राम ने हनुमान जी से कहा जितनी देर माँ सीता पूजन कर रही है उतनी देर में जाकर तुम भरत जी को यह सूचना दे दो कि भगवान राम आ रहे है। एक क्षण भी अगर देर लग गई अयोध्या पहुंचने में तो भरत उस क्षण में प्राण दे देगा।
क्योंकि भरत केवल 14 वर्ष के लिए अपने प्राण रखे है, 14 वर्ष तक जब तक भगवान राम का वनवास रहा तब तक 14 वर्ष तक दशरथ जी के अलावा अयोध्या में किसी की मृत्यु नहीं हुई। जब तक भगवान लौटकर नहीं आ गए तब तक 14 वर्ष में किसी का जन्म भी नहीं हुआ। मृत्यु इसलिए नहीं हुई क्योंकि 14 वर्ष के बाद हमारे रामजी आने वाले है उनकी आने की प्रतिक्षा में लोग अपने प्राण थामे रहे। जन्म इसलिए नहीं हुआ कि जिस अयोध्या को छोड़कर भगवान राम चले गए उस अयोध्या में हम जन्म लेकर क्या करेंगे। आधार केवल राम होना चाहिए, राम जब आधार होंगे तो जीवन ओर जन्म दोनों धन्य हो जाएगा।