डिजिटल स्पेस से जुडऩे के दौरान होने वाले नुकसानों के बारे में लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता – न्यायमूर्ति

रायपुर। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन ने पिछले दिनों आयोग द्वारा रायपुर, छत्तीसगढ़ में हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित ‘डिजिटल युग में मानव तस्करी का समाधान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। मानव तस्करी के लिए डिजिटल तकनीकों का तेजी से दोहन किए जाने के साथ, इस सम्मेलन में तस्करी अपराधों को सुविधाजनक बनाने में इंटरनेट, सोशल मीडिया, क्रिप्टोकरेंसी और विभिन्न ऑनलाइन साधनों की भूमिका और उन्हें रोकने में प्रौद्योगिकी, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और समुदाय की भूमिका की जांच की गई।

न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन ने साइबर-सक्षम तस्करी के बढ़ते खतरे पर विचार-विमर्श करने के लिए एकत्रित हुए विशेषज्ञों, कानून प्रवर्तन अधिकारियों, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं को वर्चुअली संबोधित करते हुए, यौन शोषण, श्रम शोषण, मानव अंग तस्करी और जबरन विवाह जैसे डिजिटल तस्करी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। उन्होंने “एक्टिव रिक्रूटमेंट” जिसे हुक फिशिंग के रूप में जाना जाता है, और “पैसिव रिक्रूटमेंट” जिसे नेट फिशिंग के रूप में जाना जाता है, पर भी प्रकाश डाला, जिसमें भोले-भाले लोगों को लुभाने के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग किया जाता है। एनएचआरसी अध्यक्ष ने डिजिटल स्पेस के दुरुपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए नियामक और संस्थागत ढांचे के साथ-साथ तकनीकी समाधानों को मजबूत करने के अलावा, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल स्पेस से जुडऩे के दौरान होने वाले नुकसानों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सम्मेलन को दो विषयगत सत्रों में विभाजित किया गया था। पहला सत्र मानव तस्करी और प्रवासी तस्करी को सुविधाजनक बनाने में इंटरनेट की भूमिका पर केंद्रित था: एक कानूनी, प्रशासनिक और नियामक परिप्रेक्ष्य। इसकी अध्यक्षता श्रीमती भामती बालासुब्रमण्यम, आईएएस (सेवानिवृत्त) ने की, जबकि सह-अध्यक्षता डॉ. संजीव शुक्ला, पुलिस महानिरीक्षक, बिलासपुर ने की। इसके साथ ही डॉ. केवीके संथी, विधि के प्रोफेसर, नालसार हैदराबाद; श्री कीर्तन राठौर, अपर एसपी, रायपुर; और श्रीमती प्रतिभा तिवारी, अपर एसपी, महासमुंद भी इसमें सम्मिलित थे।
इस सत्र में मानव तस्करी में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों पर व्यापक चर्चा की गई, जिसमें इसके लैंगिक आयामों और ऐसे अपराधों को सुविधाजनक बनाने में डिजिटल गुमनामी की बढ़ती भूमिका पर विशेष जोर दिया गया। चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रवासी तस्करी के मुद्दे पर केंद्रित था। इसमें विशेष रूप से भर्ती रणनीतियों, समन्वय नेटवर्क और पीडि़तों की तस्करी की जांच करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
विशेषज्ञों ने छत्तीसगढ़ में तस्करी के मामलों पर प्रकाश डाला, गैर-रिपोर्टिंग की लगातार समस्या पर प्रकाश डाला और इन चुनौतियों से निपटने में मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (एएचटीयू) द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। सत्र में तस्करी से निपटने के लिए मौजूद नियामक प्रणाली की भी पहचान की गई, जिसमें क्षमता निर्माण की आवश्यकता और डिजिटल युग के अनुरूप एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के विकास पर जोर दिया गया। इसके अतिरिक्त, वक्ताओं ने तस्करी के मामलों, विशेष रूप से सोशल मीडिया और गुमशुदा बच्चों से जुड़े मामलों को ट्रैक करने और रोकने में इंटरनेट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और डिजिटल फोरेंसिक की भूमिका को रेखांकित किया।
