सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों के मतदान अधिकार पर केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों को मतदान का अधिकार देने के मामले में केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। अधिवक्ता डॉ. सुनीता शर्मा द्वारा दायर याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) को चुनौती दी गई है, जो जेल में बंद सभी व्यक्तियों को मतदान से वंचित करती है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है, जो समानता और जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देते हैं। याचिका में कहा गया है कि लगभग 4.5 लाख कैदी देश की जेलों में बंद हैं, जिनमें से 75% से अधिक विचाराधीन हैं और उन्हें वर्षों से मुकदमे के लंबित रहने के कारण जेल में रखा गया है। ऐसे में जब उनका दोष अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है, तो उन्हें मतदान से वंचित रखना अनुचित है। याचिका में निर्वाचन आयोग की 2016 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि विचाराधीन कैदियों को मतदान का अधिकार दिया जाना चाहिए और इसके लिए जेलों में मतदान केंद्र बनाए जा सकते हैं या ई-पोस्टल बैलेट की व्यवस्था की जा सकती है। याचिका में कनाडा और ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालतों के फैसलों का भी उल्लेख किया गया है, जिन्होंने कैदियों के मतदान अधिकारों को बरकरार रखा है। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने बाकी है, जो देश के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा।
