संशय का समाधान श्रद्धा हैं, तर्क नहीं – रमेश भाई ओझा
रायपुर। तर्क से परमात्मा को जानने का प्रयास करोगे तो कभी नहीं पाओगे। तर्क से तुम अपने को ज्यादा बुद्धिमान समझते हो तो तीखे-तीखे तर्क कर सकते है, लेकिन यह उत्तर नहीं है और न ही तर्क समाधान हैं। समाधान श्रद्धा में हैं। तर्क हरा सकता है लेकिन जीत नहीं दिला सकता। संशय छुपाकर या बचाकर न रखो इसे योग्य व्यक्ति के समक्ष प्रगट कर दो नहीं तो संशय का रोग आपको मार देगा। संशय तुम्हे मारे इससे पहले उसे मिटा दो। दरिद्रता जैसा दुख नहीं और सत्संग जैसा सुख नहीं। मंदिरों में आज जो भीड़ हैं वह भक्तों की है या भिखारियों की? गरीबों से प्रेम करो, गरीबी से नहीं। गरीबी और अमीरी के बीच बढ़ती खाई किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं हैं। उस खाई को पाटना आपका धर्म है। इसलिए अपनी कमाई का दसवां हिस्सा धर्म में खर्च करो। श्रेष्ठ धर्म वही है जिसका आचरण करने से श्रीनाथ के लिए प्रेम प्रगट हो जाए। आवश्यकता अपने आप को तैयार करने की है।
जैनम मानस भवन में श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन भगवताचार्य रमेश भाई ओझा ने श्रीमद्भागवत कथा से जोड़कर कई महत्वपूर्ण सूत्र बताये। भगवान ने जो किया है वह भागवत है और जो गाया है वह गीता है। भागवत गीता में 18 हजार श्लोक हैं और गीता में 7 सौ। भगवत ज्ञान के तत्व को श्रीमद्भागवत कथा-रामायण से समझना बहुत ही सरल हो जाता है। भगवान के वियोग का अध्ययन जीवों को करना चाहिए,यदि नहीं किया तो यह जीव का दुर्भाग्य है। भागवत, गीता, रामायण भवसागर से तारने वाले हैं। भगवान की लीला को लेकर संशय होना स्वाभाविक है,जब भवानी को शंकर जी के प्रति संशय हो गया तो हम-तुम क्या हैं? लेकिन ध्यान रखें संशय को कभी छुपाकर या बचाकर न रखें यदि किसी योग्य व्यक्ति के समक्ष प्रगट नहीं किया तो एक दिन ये तुम्हे मार देगा। कितना सुंदर है सनातन धर्म कि यहां पूछने का अधिकार है किसी भी प्रकार के संशय का। जिज्ञासा हो तो जानने व समझने का। लेकिन इसके लिए तर्क कर समाधान नहीं पाया जा सकता। समाधान तो श्रद्धा में ही है। युद्ध में भी कोई नहीं जीतता,इससे तो केवल विनाश ही होता है। चाहे वह महाभारत ही क्यों न हो? सत्संग श्रद्धा को प्रगट करने वाला है।
मंदिरों में भीड़ किसकी है
सत्संग में आज रूचि नहीं लोगों को वे अपने संशय का समाधान के लिए टोटका जानने पहुंचते हैं। बच्चे कैसे पास हो जाए, कैसे नौकरी मिल जाए, कैसे धन आ जाए..? संवरने के लिए चार-चार घंटे रोज फेस करते हैं यदि इन्ही समाधानों के लिए खुद एक घंटे फेस कर लेते तो ये नौबत नहीं आती। श्री ओझा ने बड़ा सवाल किया कि आज मंदिरों में जो भीड़ है वह किसकी है भक्तों की या भिखारियों की? भगवान को चाहने वालों की या भगवान से चाहने वालों की? इसी पीड़ा को लेकर कुछ लोग धर्मान्तरण तक करा लेते हैं। अच्छा है हनुमान जी-शंकरजी के शरण में जाओ।
अमीरी-गरीबी की खाई को पाटना जरूरी हैं
रामायण से जोड़कर उन्होने बताया कि उत्तरकांड में जो बातें तुलसीदास जी ने लिखी है कि दरिद्रता जैसा दुख नहीं और सत्संग जैसा सुख नहीं। अभावग्रस्त आदमी मंदिर जायेगा भी तो भगवान से मांगने,इसलिए जिदंगी की जो जरूरतें हैं रोटी कपड़ा और मकान पहले वो जुटाओ। सत्संग की सात्विक चर्चा से आध्यात्मिक उन्नति मिलती है और यदि यह जाग गया तो वक्ता का बोलना सफल हो जाता है। शरीर, सगे संबंधी, संसार से एक न एक दिन वियोग तय है। धन हमें छोड़कर चले जाएगा इससे पहले हम धन को छोड़कर चले जाएं। अमीरी-गरीबी की खाई को पाटना जरूरी हैं। यह किसी भी दृष्टिकोण से अच्छा नहीं है। इस खाई को पाटना ही धर्म है और अपनी कमाई का दसवां हिस्सा ऐसे धर्म में लगाओं। प्रसाद गलत कार्य में नहीं जाना चाहिए, प्रसाद बांटकर खाना चाहिए यही सब धर्म सीखाता है। इसी से यह विषमता मिट सकती है और सामाजिक समरसता समाज में बन सकती है।
संस्कृति व संस्कार को बचा कर रखें
श्री ओझा ने कहा कि संस्कृति और संस्कार को बचा कर रखें। कितना भी धन हो इससे धर्म की रक्षा नहीं की जा सकती। धर्म की रक्षा तो संस्कृति व संस्कार से ही हो सकती है। इसलिए पुन: कहता हूं कि अपने संतानों को बताओ कि रामायण व श्रीमद्भागवत क्या है, उन्हे समझाओ। श्रेष्ठ धर्म वहीं है जिसका आचरण करने से श्रीनाथ के लिए प्रेम प्रगट हो जाए। आवश्यकता अपने आप को तैयार करने की है।