राजा को रथ पर बैठाने की मांग पर अड़े पटेल से विवाद के बीच फूल रथ की हुई परिक्रमा

जगदलपुर। बस्तर दशहरा में बीते दिनों परंपरानुसार फूल रथ की परिक्रमा शुरू की गई। मां दंतेश्वरी का छत्र सजाए गए चार पहियों वाले फूल रथ पर रखा गया और प्रधान पुजारी रथ पर सवार होकर गोलबाजार के बीच मावली माता की परिक्रमा की। गाजे-बाजे और ढोल-नगाड़ों के साथ मां के छत्र का स्वागत किया गया। पुलिस जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर देकर सलामी दी। नवरात्रि के तीसरे दिन निभाई जाने वाली इस परिक्रमा से पहले कुछ विवाद हो गया था। . 60 साल बाद फिर से राजा-रानी को रथ पर बैठाने की मांग को लेकर बस्तर संभाग के विभिन्न गांवों से पहुंचे पटेल समुदाय अड़ गए थे।उनका कहना था कि जब तक राजा-रानी रथ पर सवार नहीं होंगे, वे रथ नहीं खींचेंगे। देर रात तक यह विवाद होता रहा।
रथ घंटों कई घंटे तक खड़ा रहा। बस्तर कलेक्टर हरिस एस और बस्तर एसपी सलभ सिन्हा की समझाइश के बाद भी पटेल समुदाय अपनी बात पर अड़े रहे। इस पर बस्तर राज परिवार के कमल चंद भंजदेव ने बरसते पानी में ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की। आखिरकार राजा के पुजारी के रथ पर मां दंतेश्वरी का छत्र रखने के बाद परिक्रमा पूरी हुई.
गौरतलब है कि रियासत काल में यह परंपरा रही कि राजा-रानी मां दंतेश्वरी के छत्र के साथ रथ पर सवार होते थे। यह परंपरा 1965 के बाद से बंद हो गई। इस साल वर्तमान बस्तर रियासत के प्रमुख कमलचंद भंजदेव की शादी के बाद मांग उठी कि उन्हें रथ पर विराजमान होना चाहिए। लेकिन प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी। परिक्रमा में घंटों बाद देर रात रथ सिरहासार चौक से निकलकर गोलबाजार, मिताली चौक होते हुए मां दंतेश्वरी मंदिर पहुंचा। यह रस्म आगामी 3 दिनों तक निभाई जाएगी। सात सौ साल पुरानी परंपरा। बस्तर दशहरा की रथ परिक्रमा की शुरुआत 1410 ईसवी में महाराजा पुरुषोत्तम देव ने की थी।
