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छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों की रणनीति और दबाव के सामने नक्सलियों की टीसीओसी माह की रणनीति विफल

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जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खात्मे की लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। शासन-प्रशासन की नक्सलवाद के समूल खात्मे की मुहिम के तहत सुरक्षबलों की रणनीति और दबाव के आगे नक्सलियों की कमर टूट चुकी है। उनके गढ़ बारी-बारी से समाप्त किए जा रहे हैं। कहने का मतलबयह कि अब वह दूर दिन नहीं है जब राज्य से नक्सलवाद को पूरी तरह साफ कर दिया जाएगा। यही कारण है कि नक्सली टीसीओसी (टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन) माह में सुरक्षाबलों को चुनौती नहीं दे पा रहे हैं, जिसके जरिए वे सुरक्षाबलों को अपना निशाना बनाते थे। वैसे भी नक्सली पिछले 14 महीने से लगातार दबाव में हैं और उनके कोर इलाकों में सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव के कारण नक्सल संगठन को बड़ा नुकसान हुआ है।
बस्तर रेंज में बीते 60 दिनों के भीतर 67 हार्डकोर नक्सली मारे गए हैं। अब नक्सली सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के स्थान पर टीसीओसी माह के दौरान जितने भी मुठभेड़ हुई हैं, उसमें विगत 14 माह के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। इसमें 300 से अधिक नक्सली मारे गए वहीं अब तक 985 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और 1177 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है।
उल्लेखनीय है कि किसी तरह सुरक्षाबलों पर हमला कर वापसी की रणनीति तैयार करने और अन्य नक्सल गतिविधियों पर रायशुमारी के लिए सुकमा जिले के किस्टाराम थाना क्षेत्र के पुट्टेपाड़ व गुंडराज गुडेम के जंगल में 01 मार्च 2025 को एक बड़ी मीटिंग बुलाई गई थी। इस नक्सली जमावड़े की सूचना सुरक्षाबलों को मिल गई और सुरक्षाबलों के जवान मौके पर पहुंचकर दो नक्सलियों को मार गिराया और नक्सलियों की रणनीति को विफल कर दिया।
गौरतलब है कि नक्सली गर्मी के शुरू होते ही टीसीओसी (टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन) मनाते हैं, इसके पीछे भी बड़ा कारण है कि गर्मी में जंगलों में पतझड़ की स्थिति रहती है। पतझड़ की वजह से जंगल में दूर-दूर तक आसानी से देखा जा सकता है और पत्तों के नीचे वूबी ट्रैप और आईईडी भी नक्सली लगाकर रखते हैं और जवानों को निशाना बनाते हैं। बस्तर में अब तक जितनी भी बड़ी नक्सली वारदातें हुई हैं वह टीसीओसी के दौरान ही हुई हैं, लेकिन अब इस दौरान नक्सलियों को मुंह की खानी पड़ रही है।
एक मार्च से जून के पहले हफ्ते तक नक्सलियों का टीसीओसी महीना चलता था। लेकिन पिछले कुछ सालों से कमजोर पड़ रहे नक्सलियों ने इसे मार्च से पहले फरवरी माह के मध्य से ही शुरू कर दबाव बनाने की रणनीति के तहत अपने संगठन को मजबूत करने का प्रयास किया, जिसमें उन्हे सफलता नहीं मिली है। टीसीओसी माह के दौरान नक्सली बड़ी वारदात को अंजाम देने में लग जाते हैं। नक्सली टीसीओसी महीने में अपने संगठन को मजबूत करते हैं, नए लड़ाकों की भर्ती करते हैं। उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने के साथ-साथ फोर्स पर हमला करना भी सिखाते हैं। नक्सली ज्यादातर बड़ी घटनाओं को फरवरी से मई के बीच में अंजाम देते हैं। इस दौरान बीते 10 सालों में अब तक टीसीओसी माह के दौरान 250 जवान बलिदानी हो चुके हैं।
टीसीओसी माह के दौरान हुई प्रमुख घटनाओं में बलिदानी हुए जवानों का आंकड़ा –
-06 अप्रैल 2010- ताड़मेटला हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान बलिदान। -25 मई 2013- झीरम हमले में 30 से अधिक कांग्रेसी नेता मारे गए और कई जवान बलिदान। -11 मार्च 2014- टाहकावाड़ा नक्सली हमले में 15 जवान बलिदान हुए। -12 अप्रैल 2015-दरभा में 5 जवानों समेत एंबुलेंस चालक और स्वास्थ्य कर्मी बलिदान।-मार्च 2017-सुकमा के भेज्जी हमले में 11 सीआरपीएफ जवान बलिदान हुए।-06 मई 2017-सुकमा के कसालपाड़ हमले में 14 जवान बलिदान।- 25 अप्रैल 2017-सुकमा के बुर्कापाल बेस कैंप हमले में 32 सीआरपीएफ के जवान बलिदान।- 21 मार्च 2020-सुकमा के मीनपा हमले में 17 जवान बलिदान।- 23 मार्च 2021-नारायणपुर के कोहकामेटा आईईडी ब्लॉस्ट में 5 जवान बलिदान।- 03 अप्रैल 2021-बीजापुर जिले में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में 22 जवान बलिदान हुए।
बस्तर आईजी सुंरदराज पी. ने रविवार को बताया कि नक्सलियों की टीसीओसी के दौरान बस्तर पुलिस को भी बीते वर्ष 2024 में काफी उपलब्धि मिली है। इस दौरान नक्सली संगठन के कई बड़े कैडर के नक्सली भी मारे गए हैं। वर्ष 2024 में नक्सल विरोधी अभियान में प्राप्त बढ़त को आगे बरकरार रखते हुये, वर्ष 2025 में भी बस्तर संभाग में सुरक्षा बलों के जवानों ने नक्सलियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई जारी रखी है। उन्होंने बताया कि पिछले 60 दिनों में अलग-अलग मुठभेड़ों में 67 नक्सलियों को ढेर किया जा चुका है और इनके शव भी बरामद कर लिये गये हैं।
उन्होंने कहा कि नक्सलियों के खात्मे के लिए डीआरजी, कोबरा, एसटीएफ, बीएसएफ, बस्तर फाइटर्स व समस्त सुरक्षा बल के जवान मजबूत मनोबल और स्पष्ट लक्ष्य के साथ बस्तर क्षेत्र की शांति, सुरक्षा व विकास के लिए समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिबंधित नक्सली संगठन के पास अब हिंसा छोड़कर आत्मसमर्पण करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। इसलिए नक्सली संगठन से अपील है कि वे तत्काल हिंसात्मक गतिविधियों को छोड़कर समाज की मुख्यधारा में जुड़ें अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहें।

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