हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच करेगी अब सरकारी व ठेका मामलों की सुनवाई

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की फुल बेंच ने टेंडर और ठेका मामल पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि सरकार, सार्वजनिक उपक्रम, स्थानीय निकाय या वैधानिक निकायों से जुड़े सभी टेंडर या ठेका मामलों की सुनवाई अब डिवीजन बेंच (खंडपीठ) ही करेगी। यह कानूनी भ्रम तब सामने आया जब एक ही याचिकाकर्ता द्वारा एक जैसे विषय पर दो याचिकाएं दायर की गई-एक सिंगल बेंच के सामने सूचीबद्ध हुई और दूसरी डिवीजन बेंच के सामने। इस स्थिति ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या सभी टेंडर-ठेका मामलों की सुनवाई डिवीजन बेंच को ही करनी चाहिए?
हाईकोर्ट नियम 2007 के नियम 23 (1) (25) के अनुसार पहले यह स्पष्ट था कि सभी टेंडर-ठेका से जुड़ी रिट याचिकाएं डिवीजन बेंच द्वारा सुनी जाएंगी। लेकिन 4 अप्रैल 2017 को नियम में संशोधन कर केवल टेंडर-ठेका के आवंटन या समाप्ति से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई डिवीजन बेंच द्वारा तय की गई, जिससे यह भ्रम पैदा हुआ कि शो कॉज नोटिस जैसी अन्य प्रक्रियाओं से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई किस बेंच को करनी है।
डिवीजन बेंच ने अपने एक पुराने निर्णय में यह मत दिया था कि यदि केवल ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया (शो कॉज नोटिस) को चुनौती दी गई है, तो सिंगल बेंच सुनवाई कर सकती है। लेकिन फुल बेंच ने इस निर्णय को गलत माना। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा, न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास और न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की पीठ ने कहा कि विवेक इंटरप्राइजेज केस में एक कृत्रिम अंतर बनाया गया, जबकि मूल नियम पूरी तरह स्पष्ट और व्यापक था।
फुल बेंच ने कहा कि हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि सरकार, सार्वजनिक उपक्रम, स्थानीय निकाय या वैधानिक निकाय से संबंधित ठेका-टेंडर के सभी मामलों की सुनवाई डिवीजन बेंच को ही करनी चाहिए और नियम 23 (1) (25) को उसके मूल स्वरूप (2017 से पहले की स्थिति) में प्रभावी माना जाना चाहिए। यह निर्णय हाईकोर्ट नियम 2007 के सेक्शन 35 के तहत डिवीजन बेंच द्वारा किए गए संदर्भ पर सुनवाई के बाद आया।
