दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलवे को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित कर मुआवजा देने के दिए सख्त निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि प्रत्येक रेल दुर्घटना में पीड़ित या मृतक की कथित लापरवाही को दुर्घटना की जिम्मेदारी मानना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि रेल परिसर में यात्रियों की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी रेलवे पुलिस और रेलकर्मियों की होती है। यदि कोई यात्री प्लेटफॉर्म के बहुत करीब खड़ा हो, तो रेलवे अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे उसे चेतावनी देकर सुरक्षित स्थान पर ले जाएं। अगर इस तरह के प्रयास के बावजूद दुर्घटना हो जाती है, तो रेलवे को पीड़ितों को मुआवजा देना अनिवार्य होगा।
जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने एक मामले में रेल दुर्घटना में मृत महिला के पति और बच्चों को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं और मामले को रेलवे ट्रिब्यूनल के पास भेज दिया है। पहले रेलवे ट्रिब्यूनल ने मुआवजा देने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्होंने कहा था कि महिला रेलवे की वास्तविक यात्री नहीं थीं और हादसे की वजह उनकी लापरवाही थी क्योंकि वे ट्रैक के करीब खड़ी थीं।
हाईकोर्ट ने रेलवे अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि यदि महिला प्लेटफॉर्म के पास खड़ी थी, तो उस समय रेलवे पुलिस और अधिकारी क्या कर रहे थे? यह दर्शाता है कि वे अपनी ड्यूटी के प्रति सतर्क नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की लापरवाही से रोजाना लाखों यात्रियों की जान खतरे में रहती है और रेलवे को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की पूरी जिम्मेदारी निभानी होगी। ऐसे मामलों में मुआवजा देने से बचने के लिए कोई बहाना स्वीकार्य नहीं होगा।
यह दुर्घटना 22 जनवरी 2016 की है जब गाजियाबाद से मथुरा पैंसेजर ट्रेन से आ रही महिला भूतेश्वर रेलवे स्टेशन पर चलती ट्रेन से गिर गई और उनकी मौत हो गई। ट्रिब्यूनल ने मुआवजा दावे को टिकट न होने के आधार पर खारिज कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे सही नहीं माना और रेलवे की जिम्मेदारी जताई है।
