व्यक्ति को शांति और समाज को क्रांति देने वाली है श्रीकृष्ण लीला – रमेश भाई ओझा
रायपुर। प्रत्येक व्यक्ति को शांति और समाज को क्रांति चाहिए और यह दोनों प्रदान करने वाला श्रीकृष्ण चरित्र है। शांति के वातावरण में समाज, परिवार, राष्ट्र को उन्नति प्राप्त होता है। वहीं समय-समय पर समाज में बदलाव के लिए क्रांति भी आवश्यक है। ऐसा करने के लिए साधु संत, नेता, युग पुरूष समय के साथ प्रगट होते हैं। कृष्ण के चरित्र में ऐसा जादू है कि व्यक्ति को शांति और समाज को क्रांति प्रदान करता है। वे अंधपरम्परावादी भी नहीं, आवेश में परम्परा का भंजन करने वाले भी नहीं बल्कि उपयोगी व अच्छी बदलाव बताते हैं। श्रीकृष्ण जगतगुरु है, श्रीकृष्ण के समान कोई राजनीतिज्ञ नहीं, कलाकार नहीं, धर्मज्ञ नहीं, कुरुक्षेत्र के मैदान में किए गायन श्रीमद्भागवत कथा बन गया। श्रीकृष्ण लोगों में आस्था का संस्थापन करते हैं। भगवान व भाग्य के भरोसे जीना भी गलत हैं,पहले कर्म तो करो। हालांकि होगा देव कृपा से ही इसलिए पुरुषार्थ तो करो। भागवत कथा का बुधवार को विश्रांति दिवस है और कथा का समय सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक है।
जैनम मानस भवन में छठवें दिन भगवताचार्य श्री रमेश भाई ओझा ने गोवर्धन प्रसंग पर बताया कि इंद्रदेव को अहंकार हो गया था। इसे तोडऩे श्रीकृष्ण ने बृजवासियों को कहा कि क्या तुमने इंद्र को कभी देखा है जो उनकी पूजा करते हो। जो प्रत्यक्ष देव हैं उसकी पूजा करो। गोवर्धन पर्वत,गौ माता की पूजा करो। गोवर्धन तुम्हे फल फूल औषधि देते हैं। गौ माता से तुम्हारा जीवन यापन होता है। इसी को आगे उद्धृत करते हुए बताया कि केवल देव दीपन कर या भाग्यावादी बनकर जीना भी गलत है। इसीलिए तो लोग आज हस्तरेखा दिखाने ज्योतिषों के फेर में पड़ गए हैं। इसी में रूचि है लोगों को। गीता में भगवान ने भाग्य को पांचवे क्रम में बताया है। मन काया को काम पर तो लगाओ, कर्म तो करो, पुरुषार्थ तो करो। हालांकि होगा सब कुछ देव कृपा से ही।
हिंसा से जिसके दिल में दुख होता है वह हिंदू है
बड़ी ही मार्मिक व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि हिंसा से जिसके दिल में दुख होता है वह हिंदू है। संवेदनशीलता व सहनशीलता की पराकाष्ठा है। जो आत्मा मुझमें वहीं सब में है यह मानता है। इसलिए चीटियों ही नहीं हर जीव से प्यार करता है। जीवन शैली का नाम हैं। ऐसी समग्र पद्धति हारमेनिक क्रिएट करते हैं जीने के लिए। जिसने बिगड़ते पर्यावरण को संतुलित करने के लिए प्रकृति का पूजा करना सिखाया है। इसका समाधान भी हिंदू जीवन शैली में है। इसलिए इंद्र की भांति अहंकार नहीं करना,भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन लीला के माध्यम से यह सीख दी है।
भागवत कथा सुनने के पांच फल क्या है
श्रीमद्भागवत कथा सुनने के पांच फल क्या है जो राजा परिक्षित ने बताए हैं। पहला-भजन करने में जो अरूचि है, उसे दूर करते हैं। ठीक वैसे ही जैसे भोजन नहीं मिलने पर भूख की व्याकुलता रहती है ठीक वैसे ही भजन या धर्म नहीं करने व्याकुलता आए। भगवत नाम जपने से मन आनंदित व स्वस्थ रहती है। दूसरा-संसार के विषयों की तृष्णा को मिटाते हैं। विषय विलास से दूर करती है। क्रिया वही रहती है केवल भाव बदल जाते हैं। भगवान की कथा सुनकर ही प्रसन्न होगी। तीसरा-मन अविलंब शुद्ध हो जावे, संपूर्ण शुद्ध जिस प्रकार होता है वैसा किसी अन्य साधन में नहीं। सदकर्म में न जाने कितने साल लग जाए पर कथा श्रवण से इसकी शीघ्र प्राप्ति हो जाती है। चौथा-विशुद्ध मन में भगवत प्रेम प्रगट होता है। भक्ति का पता ही नहीं चलेगा। पांचवा-ऐसे लोग जिनसे यह कथा सुनने को मिला या प्राप्त हुआ उन महापुरुषों के प्रति स्नेह का नाता बनाते हैं। जो आपके सुख दुख में साथ बांटते हैं।
एजुकेशन सिस्टम को सुधारने की आवश्यकता
भगवताचार्य ने बार-बार व्यासपीठ से एजुकेशन सिस्टम को सुधारने की बात कही। जब शिक्षक की मानसिकता नौकरी करने की हो गई तो वे सही शिक्षा नहीं दे पायेंगे। समाज व राष्ट्र निर्माण की सोंच उनमें होनी चाहिए। कहने की बात नहीं है आज तो ये स्थिति कहीं-कहीं हो गई है कि नौकरी में जो मिल रहा है आधा तू ले और जाकर पढ़ा। ऐसा चाणक्य पैदा हो जो बिगड़ी हुई शासन व्यवस्था को सुधारने का भी प्रण ले। उन्होंने खुद के द्वारा चलाये जा रहे विद्यापीठ की जानकारी भी दी।
कल कथा सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक
भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का कल बुधवार को विश्रांति दिवस है और कथा का समय सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक है।