समाज व सिनेमा एक ऐसा मिरर है जिसमें दोनों तरफ से प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है – जावेद अख्तर
0- पहले की फिल्में बहुत चलती थी, आज की जल्दी उतर जाते हैं
0- आज हम लोग जैसा देखना चाह रहे है वैसी ही फिल्में बन रही है
0- आदमी को अपनी तरक्की पर कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए
रायपुर। राजधानी रायपुर के मेफेयर लेक रिसॉर्ट में आयोजित ऑल इंडिया स्टील कॉनक्लेव 02 में शनिवार शाम मोटिवेशनल सत्र में पद्मश्री जावेद अख्तर शामिल रहे, उन्होने समाज व सिनेमा को एक ऐसा मिरर बताया जिसमें दोनों तरफ से प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। शोले व दीवार फिल्म से लेकर आज के दौर की सिनेमा, कहानी, कलाकारों पर उन्होने विचार रखे वहीं एक गंभीर लेखक व साहित्यकार होने के नाते भाषा की शुद्धता से लेकर कहावतों व मुहावरों पर भी बात की। यदि आज कोई मुहावरा कह दे तो लोग कहेंगे कौन सी सेंचुरी का आदमी है यह? सिनेमा व स्टील इंडस्ट्री में काम की समानता को लेकर किए गए एक सवाल पर कहा कि सिनेमा ज्यादा मुश्किल है। स्टील इंडस्ट्री में जिस प्रकार तेजी मंदी का अभी दौर चल रहा है क्या कुछ ऐसा ही हाल फिल्म इंडस्ट्री का है, इस पर उन्होने हामी भरी।
जावेद अख्तर ने कहा कि समाज में आज भाषा छूप गई है हम अपने बच्चों को इंग्लिश की शिक्षा देना ज्यादा जरुरी समझ रहे है, यह अच्छी बात है लेकिन उन्हें हिन्दी की पुस्तकें तो पढ़ाना पहले सिखाओ। हमारा बच्चा आज पुराने गानों को सुनना और पुरानी फिल्मों को देखना पसंद नहीं करते है लेकिन जब हम उन्हें इस बारे में बताएंगे नहीं तो वे आजकल जो फिल्में बन रही है वही वे देखने जाएंगे इसके लिए हमारा समाज भी जिम्मेदार है क्योंकि हम लोग जैसा देखना चाह रहे है फिल्मी दुनिया वाले वैसी ही फिल्में बना रहे है। पहले की फिल्में बहुत चलती थी लेकिन आजकल की फिल्में पर्दे से जल्द उतर जाती है क्योंकि हमारे डायरेक्टरों और निर्माताओं ने गांव की तरफ रुख करना छोड़ दिया है। हम जब फिल्म बनाते थे तो गांव में कैसा माहौल होगा, उन्हें क्या चीज ज्यादा देखना पसंद है यह देखते थे लेकिन आज कल के डायरेक्टर और निर्माता यह सोचते है कि उनकी फिल्म शहरों में चल जाए बस, गांव वाले चाहे देखे या न देखे।
जावेद साहब ने कहा कि आदमी को अपनी तरक्की पर कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए और अपनी तकलीफों और बूरे दिन को भूलना भी नहीं चाहिए। जब हम बुरे वक्त से गुजर जाते है तो अलग-अलग तरीकों उसे बचाते भी है। असल में हम यह बताते कि हम आए कहां से है, बताते यह है कि हम पहुंचे कहां तक है, इसमें भी एक घमण्ड है, ऐसा हमें कभी नहीं करना चाहिए।
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा गाना के लिए मुझे चंद मिनट ही लगे, मुझे याद ही नहीं था कि किसी फिल्म के लिए इस प्रकार का गाना लिखा है। मैंने डायरेक्टर और बर्मन साहब के पास ये चंद लाइन बोल दिया, बस ओके हो गया और इसके दो-चार बोल बाद में लिखे गए। जब हम लोग पहले गाना लिखते थे तब सिचवेशन को देखकर लिखते थे, जब मैंने यह गाना लिखा और इस सीन पर इसे डाला जाना चाहिए बोला तो डायरेक्टर भी अचरज में पड़ गए कि इस सीन पर कैसे गाना आ सकता है फिर भी मेरे कहने पर उन्होंने यह सीन क्रियेट किया और आज यह गाना बहुत लोगों की जुंबा पर है।
सारी कहानी, म्युजिक क्रियेटिव नहीं है, क्रियेटिव का मतलब यह है जो किसी ने ना किया हो वो तुम करो। एक दिन वही गाने लिख रहा है जो उन्होंने 25 बार लिखा है, ये क्रियेटिव नहीं है, ये तो एल्युमेंट कर रहा है। क्रियेटिविटी का मतलब नये अंदाज से सोचने पर लिखा गया हो। जैसे आपकी स्टील इंडस्ट्रीज है जो अभी काफी ग्रोथ कर रहा है लेकिन जब कठिनाई का दौर आया था तो उसे कैसे सामना करना पड़ा था,यह सोचना होता है, ये क्रियेटिव होता है। अगर हम अपने काम में वही सब चीजें देंगे तो लोग उसे पसंद नहीं करेंगे, उसी तरह हमारा इंडस्ट्री भी है।
भोपाल मेरे लिए इनवाइटेड क्वामा क्योंकि मैं वहां सिर्फ 4 साल रहा हूं मेरी पूरी पढ़ाई लखनऊ में हुई है। स्कूल की पढ़ाई और कॉलेज यहां से किया हूं और बीच में कहीं और था। 15 वर्ष की उम्र में मैं भोपाल गया और 19 वर्ष की उम्र में मुंबई आ गया था।।
फिल्म शोले के हर किरदार करने वाले को आप जानते है, गब्बर सिंह हो या मौसी माँ इन सबसे अपने अभिनय के जरिए यह मुकाम हासिल किया है लेकिन अभी वर्तमान में आपसे यह पूछा जाए कि तुमने कुछ महीने पहले फलाना -फलाना फिल्म देखी तो उसमें किसने तुम्हारा हंसाया रुलाया, तुम नहीं बता पाओगे। शोले फिल्म उस दौर की काफी लंबी फिल्म थी और इस 15 अगस्त को उसे 50 साल हो जाएंगे वैसे ही दीवार फिल्म भी मार्च में अपना 50 साल पूरा कर रहा है।
फिल्मों के लिए गाने और डायलॉग तो बहुत लिखे लेकिन कलाकारों की बात करें तो फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कभी शिकायत नहीं की बल्कि जो वो लिखते थे उससे कहीं ज्यादा वे किरदार में घुस जाते थे। डायलॉग बोलने वाले को लोग जानते है लेकिन लिखने वाला हमेशा पीछे ही रहता है। लोगों ने कई सारे सवाल भी जावेद अख्तर से किए और उन्होने जवाब भी दिए। अंत में आयोजकों ने उन्हे स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।