संसार आपके प्रतिकुल हो तो आप भगवान की परम अनुकुलता पा लेंगे – मैथिलीशरण भाई जी
रायपुर। जब संसार आपके प्रतिकुल हो तो आप भगवान की परम अनुकुलता पा लेगे। आपके जीवन में दुख समाप्त हो जाएगा और आपके जीवन में दुख मात्र इसलिए बढ़ता जाता है, यह दुख जिसके जीवन में बढ़ रहा है इसका प्रत्यक्ष कारण है उसकी आशा का केंद्र भगवान नहीं संसार है और संसार कभी सुख दे ही नहीं सकता। सुख और दुख दिया नहीं जाता, लिया जाता है।
मैक कॉलेज समता कालोनी में चल रही श्रीराम कथा में मैथिलीशरण भाई जी ने बताया कि जो बात कथा में कही जाती है वह जीवन से सीधी जुड़ी होती है। भगवान श्रीराम के दो गुरु है एक लौकिक और एक वैदिक। ये दोनों अलग-अलग कह रहे है उसका तात्पर्य यह नही है कि विश्वामित्र जी वैदिक नहीं और वशिष्ट जी लौकिक नहीं है। किसी स्थान पर पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्तोंं का उपयोग करते है लेकिन वह रास्ता एक जगह आकर मिल जाता है इसका तात्पर्य यह होता है कि जिस स्थान पर हम पहुंचना चाहते है वहां पहुंचने के रास्ते अलग-अलग होते है इसलिए लौकिक और वैदिक को विभाजित कर दिया गया है। लेकिन वैदिक और लौकिक का तत्व होता है जहां पर हम पहुंचना चाहते है वह ईश्वर होता है। चाहे लोक तत्व हो, वेद तत्व हो या चाहे ध्यान के द्वारा, मंदिर, तीर्थ में जाकर तुम भगवान को पाने की चेष्ठा करें जैसे हमारी इच्छा हो, साधाने बताई है लेकिन यह विभाजन नहीं है। जहां पर अधिक परिवार एक ही रसोई में भोजन करते है तो उस घर में व्यंजन व भोजन बनते है उसकी संख्या अधिक होती है, क्योंकि किसी को कुछ पसंद है और किसी को ना पसंद है। परिणाम यह होता है कि सबके पसंद का कम से कम एक व्यंजन तो बनता ही है। एक – एक वस्तु बनेगी तो भी जो दो या तीन लोग रहते है उनकी तुलना में थाली में ज्यादा खाना आएगा। उसी प्रकार से हमारे यहां अलग-अलग पद्धतियां बताई गई है इसका तात्पर्य विभाजन नहीं है उसका तात्पर्य है सबका विभाजन का ध्यान रखना। जब सबकी भावनाओं का ध्यान रखता है इसमें कुछ श्रोता लोगों का कहना है कि कथा कब पूरी हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता है, व्यवस्था मंडल कहता है पांच मिनट ज्यादा हो गई।
भाईजी ने कहा कि जिसकी जैसी मन:स्थिति और भावना होती है उसको कोई भी वस्तु वैसी ही दिखाई देती है। कभी वह अनुमान प्रमाण से देखता है, कभी लक्षण प्रमाण से देखता है, कभी वह प्रत्यक्ष प्रमाण से देखता है लेकिन इससे सिद्धी जो होती है वह मूल की होती है। जब सूर्य का प्रतिबिंब जल के ऊपर दिखाई देता है और कोयले के ऊपर प्रतिबिंब दिखाई नही देता है। सूर्य प्रकाशित जल को भी कर रहा और कोयले को भी कर रहा है लेकिन कोयले में प्रतिबिंब इसलिए दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि उसने अपनी धारणा पहले से ही सूर्य के विपरीत बना लिया है। आप किसी विस्तु की प्रतिकल्पना करत हुए उसे मान्यता बना लेंगे तो कितने भी सत्य या ज्ञान का प्रतिपादन किया जाए तो वह आपकी बुद्धि मे एक भी नहीं पड़ेगा।
भाई जी ने बताया कि मोह किसको कहते है यह संत लोग सब समझ जाते है। मोहग्रस्त उसको कहते है जब तक उनके साथ वह व्यवहार कर रहा है तब वह आलोचना कर रहे है मुझसे, लेकिन जब वही व्यवहार वह हमसे करेगा और हम उनसे कहेंगे तो वह कहेगा नहीं-नहीं आपको समझने में गलती हुई होगी। उसका कारण यह है कि जो व्यक्ति उसमें दोष देख रहा था उस समय भी वह मोह में था क्योंकि इस संसार को संसार नाम मान करके तत्पदार्थ उसमें देख रहा था। जो आपसे कठोर व्यवहार कर रहा है उसको संसार मानेेंगे और भगवान का प्रसाद मानेंगे तो आपको उस समय भी कष्ट नहीं होगा और आप हमसे कहेंगे नहीं और आकर कहेंगे भगवान की महती कृपा है हमारे ऊपर।