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शारदीय नवरात्र कल से, रतनपुर में सबसे ज्यादा मनोकामना ज्योत होते हैं प्रज्ज्वलित

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बिलासपुर। रतनपुर में विराजमान हैं माँ महामाया. एक ऐसा शक्तिपीठ जहाँ महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के रूप में मां की पूजा की जाती है। रतनपुर स्थित इस मंदिर में शक्ति की भक्ति की जाती है। नवरात्र में दुनिया में सबसे अधिक मनोकामना ज्योति कलश इसी मंदिर में जलाए जाते हैं. इस बार नवरात्र में इनकी संख्या 31 हज़ार से भी अधिक है।
बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर बसा है रतनपुर। यह एक ऐतिहासिक नगर है। यह नगर प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ की राजधानी थी। इसे कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव ने बसाया था, इसीलिए इस शहर का नाम रत्नपुर था। जो आगे चल कर रतनपुर हो गया। यह बारह पंद्रह सौ साल पुराना नगर है।
यहीं माता महामाया विराजित हैं। जिनके दर्शन मात्र से सारे दुखों का नाश हो जाता है। माता के दर्शन करने पुरे देश भर से लोग पहुंचते हैं। यहाँ वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है परन्तु दोनों नवरात्रिओं के दौरान तो बहुत ही ज्यादा भीड़ रहती है।
यहां की दर्शन यात्रा रतनपुर के रक्षक के रूप में विराजित भैरव बाबा के मंदिर से शुरू होती है। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के बाद देवी मां के दर्शन करने से मां महामाया के दर्शन पूर्ण होता है। लोगो का मानना है कि भैरव बाबा के बाद माता के दर्शन से लाभ सौ गुना हो जाता है।. यदि कोई श्रद्धालु किसी कारण से भैरव बाबा के मंदिर में पहले दर्शन नहीं कर पाएं. तो देवी मां के दर्शन के बाद भैरव बाबा मंदिर में आना जरूरी है, इसके बिना रतनपुर की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

महामाया के गर्भगृह में मां महालक्ष्मी और मां महासरस्वती की प्रतिमा प्रत्यक्ष रूप से विराजमान है। मां महाकाली गुप्त रूप से मंदिर में मौजूद रहती हैं। इनके समग्र स्वरूप को मां महामाया के रूप में पूजा जाता है। त्रिदेवी स्वरूप में यह मंदिर विश्व में अपनी तरह का एकमात्र स्थान माना जाता है।
इसे शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि .यह स्थान उन 51 स्थलों में से एक है, जहाँ माता सती के अंग गिरे थे। यहाँ माँ का दाहिना स्कंध गिरा था। ये मंदिर न सिर्फ धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। नवरात्र पर यहाँ दुनिया भर के लोग मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित कराते हैं। इस बार नवरात्र में 31 हज़ार से अधिक मनोकामना प्रज्वलित कराए गए हैं।

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