ChhattisgarhPolitics

सशक्तता के बीज : आगामी बजट में भारतीय कृषि सुधार पर जोर

Share

(नवीन पी सिंह)

भारतीय कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। यह क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 18 प्रतिशत का योगदान देता है और लगभग 58 प्रतिशत आबादी को आजीविका प्रदान करता है। यह अनिवार्य क्षेत्र खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है और कई संबद्ध उद्योगों का समर्थन करता है। जैसे-जैसे हम वित्त वर्ष 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट के करीब पहुंच रहे हैं, हमें उन असंख्य चुनौतियों को पहचानना चाहिए, जो इसकी स्थिरता और प्रगति को खतरे में डालती हैं। पिछले कुछ समय में, कमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव और किसानों का बढ़ता कर्ज फिलहाल कृषि उत्पादकता और कल्याण पर विपरीत प्रभाव डालता है। मध्यम अवधि की चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए स्थायी प्रणालियों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता शामिल है, ताकि पारंपरिक कृषि पद्धतियां बाधित न हों। भविष्य का ध्यान रखते हुए, इस क्षेत्र को तेजी से बदलते आर्थिक परिदृश्य में अपनी महत्वपूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिए नवाचार को अपनाकर और विकास की ओर बढ़ना चाहिए। नीति निर्माताओं को आगामी बजट में दीर्घकालिक सतत विकास पहलों के साथ इन तत्काल दबावों को रणनीतिक रूप से संतुलित करना चाहिए। संकटग्रस्त किसानों के लिए तत्काल राहत के उपायों को प्राथमिकता देकर, जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों में निवेश करके और नवाचार को बढ़ावा देकर, सरकार कृषि क्षेत्र के लिए एक व्यापक कार्यक्रम बना सकती है, जो आर्थिक विकास का समर्थन करे और भारतीय कृषि के भविष्य को सुरक्षित करे।
कृषि अनुसंधान एवं विकास में ऊंची छलांग – समय की आवश्यकता
भारतीय कृषि अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को बहुत कम धन उपलब्ध है, जो वैश्विक औसत 1 प्रतिशत की तुलना में कृषि सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.4 प्रतिशत है। यह कमी नवाचार और जलवायु-अनुकूल फसलों, जल प्रबंधन और उन्नत कीट नियंत्रण जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों के लिए समाधान अपनाने में बाधा डालती है। बजट में आरएंडडी आवंटन को दोगुना करना चाहिए, आईसीएआर और एसएयू जैसे संस्थानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) से प्राप्त बेहतर कर लाभों के माध्यम से निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए। ये पहल शिक्षाविदों, उद्योग और किसानों के बीच मजबूत सहयोग पर आधारित इको-सिस्टम का निर्माण करेगी, जिससे ऐसी सफलताएं सुनिश्चित होंगी और कृषि उत्पादकता के साथ-साथ स्थायित्व को बढ़ावा मिल सकता है।
फसल की कटाई के बाद के नुकसान को कम करने हेतु इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी दूर करना
भारत में फसल की कटाई के बाद का नुकसान सालाना 10-20 प्रतिशत तक होता है, जो भंडारण, रसद और वितरण संबंधी अक्षमताओं को चिन्हित करता है। कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर कोष के अंतर्गत आवंटन के बावजूद, ये अंतर अपनी जगह कायम हैं। इस बजट में ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण सुविधा, कोल्ड चेन और डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार करने के कार्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि बर्बादी को कम किया जा सके और किसानों का बाजार से संपर्क बढ़ाया जा सके। इसके अलावा, बढ़ते खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र और बढ़ती प्रति व्यक्ति आय भारत में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग को बढ़ाती है। इसके लिए एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला की आवश्यकता होती है। मशरूम की खेती और मधुमक्खी पालन जैसी वैकल्पिक कृषि गतिविधियों में निवेश करने से अतिरिक्त ग्रामीण रोजगार पैदा हो सकते हैं। सूक्ष्म सिंचाई पहलों का विस्तार करने से उत्पादकता में और भी अधिक वृद्धि होने के साथ ही पानी की कमी दूर की जा सकेगी।
जलवायु अनुकूलन : कृषि नीति का एक नया स्तंभ
अप्रत्याशित मौसम, बेमौसम बारिश और मिट्टी के क्षरण के कारण जलवायु परिवर्तन भारतीय कृषि के लिए जोखिम उत्पन्न करता है। फसल विविधीकरण और प्राकृतिक तथा जैविक खेती सहित टिकाऊ प्रणालियों के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता आवश्यक है। जल की कमी वाले क्षेत्रों को कवर करने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का विस्तार करना और सौर ऊर्जा से सिंचाई के लिए सब्सिडी प्रदान करना जलवायु के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है। तिलहन और दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए लक्षित मिशन-मोड कार्यक्रम जलवायु से जुड़ी चुनौतियों से निपट सकते हैं, साथ ही आयात पर निर्भरता कम कर आत्मनिर्भरता बढ़ा सकते हैं।
फसल विविधीकरण: किसानों की आर्थिक मजबूती का माध्यम
पशुधन, मत्स्य पालन और बागवानी जैसे संबद्ध क्षेत्रों में आय स्रोतों में विविधता लाना किसानों की फसल आय पर निर्भरता को कम करने के लिए आवश्यक है। पशुधन कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 28 प्रतिशत है, और मत्स्य पालन को पशुपालन इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास निधि और पीएमएमएसवाई जैसी लक्षित योजनाओं के माध्यम से अधिक धन की आवश्यकता है। इसी तरह, बागवानी इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश, जैसे कि फ्रीजिंग, भंडारण और प्रसंस्करण से जुड़ी सुविधाएं, इस क्षेत्र की निर्यात क्षमता को बढ़ा सकती हैं। बजट में इन क्षेत्रों को एक ऐसी समेकित कृषि प्रणाली में एकीकृत किया जाना चाहिए, जो किसानों को अधिकतम लाभ प्रदान करे।
डिजिटल कृषि: खेती की परंपराओं में सुधार
कृषि क्षेत्र में डिजिटल क्रिया-कलाप शामिल होने से निर्णय प्रक्रिया और दक्षता में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है। पारदर्शिता और बाजार की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ई-एनएएम जैसे प्लेटफॉर्म का विस्तार करके इसमें सभी मंडियों को शामिल किया जाना चाहिए। आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, फसल बीमा और मृदा स्वास्थ्य निगरानी में एआई और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों को एक साथ जोड़ने से दक्षता और जोखिम प्रबंधन में काफी सुधार हो सकता है। 10,000 कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की स्थापना के लिए मजबूत वित्तीय और तकनीकी सहायता की आवश्यकता है, ताकि सामूहिक सौदेबाजी और बाजार पहुंच में वृद्धि के माध्यम से लघु एवं सीमांत किसानों को सशक्त बनाया जा सके।
डिजिटल इकोसिस्टम के साथ स्पॉट और वायदा बाजारों को जोड़ना
केंद्रीय बजट में मजबूत डिजिटल इकोसिस्टम और डेटा-संचालित संरचना विकसित करके स्पॉट और वायदा बाजारों को एक साथ जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। ई-एनएएम जैसे डिजिटल स्पॉट बाजारों का विस्तार करके इसमें सभी मंडियों को शामिल करना और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक वेयरहाउस रिसीट (ई-डब्ल्यूआर) से जोड़ना किसानों को उनकी फसल की कुल उपज का मुद्रीकरण करने, संकट की स्थिति में बिक्री को कम करने और वैश्विक व्यापार मानकों का अनुपालन करने में सक्षम बना सकता है। वस्तुओं के लिए एक केंद्रीकृत डेटा भंडार, वेयरहाउसिंग सिस्टम, ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और सरकारी एजेंसियों से इनपुट को समेकित करके, वायदा बाजारों में सटीक मूल्य का पता लगाने और जागरूक निर्णय लेने की सुविधा प्रदान कर सकता है। इसके अलावा, स्पॉट और वायदा बाजारों के विकास को सुसंगत बनाने के लिए लगातार नीतिगत समर्थन आवश्यक है। इस पूरी प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे इनके बीच तालमेल बिठाते हुए कार्य करें। यह दृष्टिकोण पारदर्शिता को बढ़ावा देगा, मूल्य का पता लगाने की संभावना बढ़ाएगा और एक कृषि बाजार के एक मजबूत इको-सिसस्टम का निर्माण करेगा, जो वैश्विक बाजारों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देते हुए सभी हितधारकों को सशक्त बनाएगा।

लघु और सीमांत किसानों की ऋण तक पहुंच बढ़ाना
संस्थागत ऋण तक पहुंच छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, जिसमें किरायेदार किसान भी शामिल हैं, जिनकी संख्या भारत के शहरीकरण के साथ बढ़ रही है। ये किसान अक्सर अनौपचारिक ऋणदाताओं से उच्च ब्याज दर पर कर्ज लेते हैं। छोटे और पट्टे पर खेती करने वाले किसानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कृषि ऋण लक्ष्य को 20 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 25 लाख करोड़ रुपये करना आवश्यक है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने से फसल बीमा अपनाने को बढ़ावा मिल सकता है। एक मजबूत ऋण और बीमा संरचना किसानों की सुरक्षा कर सकता है, उनकी वित्तीय कमजोरियां कम कर सकता है और लाभदायक निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है।
महिला सशक्तीकरण : भारतीय कृषि का आधार
भारत के कृषि कार्यबल में 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं। उन्हें संसाधनों तक पहुंचने और निर्णय लेने वाले प्लेटफार्मों में भाग लेने के लिए प्रणालीगत बाधाओं का सामना करना पड़ता है। वे लगभग 33 प्रतिशत कृषि भूमि मालिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं, किंतु उनके पास अक्सर आय और परिसंपत्तियों पर नियंत्रण नहीं होता है। ऐसे में यह बात महत्वपूर्ण है कि उन्हें कौशल विकास, भूमि स्वामित्व अधिकार और संस्थागत ऋण तक पहुंच को बढ़ावा देने हेतु महिला-पुरुष आधारित विशिष्ट कार्यक्रम तैयार किए जाएं। बजट में महिला किसानों को सशक्त बनाने की पहल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण समृद्धि सुनिश्चित करने में उनकी आवश्यक भूमिका को स्वीकार करना चाहिए।
भारत को कृषि व्यापार में वैश्विक अग्रणी बनाना
भारत के कृषि निर्यात में वृद्धि की अपार संभावना है, जिसका मूल्य 2023-24 के लिए 50 बिलियन डॉलर है। निर्यात इन्फ्रास्ट्रक्चर और रसद को बढ़ाने के लिए 10,000 करोड़ रुपये का कोष स्थापित करने से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा। जैविक और मूल्यवर्धित उत्पादों में निवेश उच्च मूल्य वाले अंतरराष्ट्रीय बाजारों को लक्षित कर सकता है। रणनीतिक व्यापार साझेदारी और द्विपक्षीय समझौतों में गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने और भारतीय निर्यात को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। किसान प्रतिनिधियों और व्यापार विशेषज्ञों से युक्त एक वैधानिक निकाय व्यापक निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित कर सकता है, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाते हुए देश के किसानों के हितों की रक्षा करे।
संक्षेप में, केंद्रीय बजट वित्त वर्ष 2025-26 भारतीय कृषि के भविष्य की फिर से कल्पना करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। मौजूदा चुनौतियों का समाधान करके तथा अनुसंधान और विकास को प्राथमिकता देने, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करने, जलवायु के प्रति अनुकूलन को बढ़ावा देने और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने जैसी रणनीतिक पहलों को लागू करके, सरकार कृषि को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी उद्योग के रूप में आगे बढ़ा सकती है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्रगति के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना और ऋण तक समान पहुंच सुनिश्चित करना अर्थव्यवस्था के आधार को मजबूत करेगा और लाखों लोगों के लिए स्थायी आजीविका प्रदान करेगा। जीएसटी परिषद की तर्ज पर कृषि विकास परिषद (एडीसी) की स्थापना वर्तमान समय की मांग है। इनके परिणामस्वरूप भारतीय कृषि विकास और नवाचार का एक शक्तिशाली प्रतीक बनकर दूसरों के लिए एक बेंचमार्क स्थापित कर सकती है।

(डॉ. नवीन पी सिंह, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि लागत और मूल्य आयोग के आधिकारिक सदस्य हैं, आलेख में व्यक्त किए गए विचार विशुद्ध रूप से उनके निजी हैं।)

GLIBS WhatsApp Group
Show More
Back to top button