खैरागढ़ के रूसे जलाशय में दुर्लभ स्टेपे गल की उपस्थिति

मैकाल पर्वत श्रृंखला से घिरे खैरागढ़ के जंगलों ने एक बार फिर अपनी समृद्ध जैव विविधता का प्रमाण दिया है। करीब पांच वर्षों के अंतराल के बाद खैरागढ़ स्थित रूसे जलाशय में दुर्लभ प्रवासी पक्षी स्टेपे गल (Steppe Gull) की मौजूदगी दर्ज की गई है। पक्षी विज्ञानी प्रतीक ठाकुर ने इसे अपने कैमरे में रिकॉर्ड किया है और विशेषज्ञों द्वारा इसकी पहचान की पुष्टि की गई है। यह घटना न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे मध्य भारत के लिए महत्वपूर्ण पर्यावरणीय उपलब्धि मानी जा रही है।
स्टेपे गल मूल रूप से पूर्वी यूरोप, दक्षिणी रूस और मध्य एशिया के स्टेपी क्षेत्रों में प्रजनन करता है। सर्दियों में यह हजारों किलोमीटर की उड़ान भरकर पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया तक आता है। भारत में इसकी उपस्थिति दुर्लभ मानी जाती है और अधिकतर समुद्री तटों तक सीमित रहती है। ऐसे में छत्तीसगढ़ जैसे आंतरिक वन क्षेत्र के रूसे जलाशय में इसका दिखाई देना वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।
विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी प्रवासी गल का आंतरिक भू-भाग के जलाशय में ठहरना संकेत है कि वहां जल गुणवत्ता, भोजन उपलब्धता और प्राकृतिक शांति का संतुलन बना हुआ है। यही कारण है कि स्टेपे गल जैसे संवेदनशील प्रवासी पक्षी इस क्षेत्र को अस्थायी आश्रय के रूप में चुन रहे हैं।
रूसे जलाशय पहले से ही अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां हर वर्ष कॉमन क्रेन जैसे दुर्लभ पक्षियों की नियमित उपस्थिति दर्ज होती है। इसके अलावा जलपक्षियों और प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियां यहां देखी जाती रही हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि स्टेपे गल की मौजूदगी इस बात की पुष्टि करती है कि रूसे जलाशय अब केवल जलस्रोत नहीं, बल्कि प्रवासी और संकटग्रस्त पक्षियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन रहा है।
विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए यहां बर्ड टूरिज्म विकसित किया जाए। इससे जैव विविधता का संरक्षण तो होगा ही, साथ ही स्थानीय रोजगार और पर्यावरणीय जागरूकता भी बढ़ेगी। रूसे जलाशय में स्टेपे गल की यह दुर्लभ उपस्थिति खैरागढ़ के लिए यह संदेश देती है कि यदि प्रकृति का संरक्षण और सम्मान किया जाए, तो वह अपनी समृद्धि और पहचान स्वयं लौटाकर देती है।







