बिना काम हुए ठेकेदारों को सवा 4 करोड़ का भुगतान!

कोरबा। संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत जारी फंड में छात्रावास और आश्रमों के मरम्मत एवं निर्माण कार्य में बड़ा घोटाला सामने आया है। आरोप है कि बिना किसी कार्य के ठेकेदारों को 4 करोड़ 36 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। इस मामले में शिकायत मिलने पर कलेक्टर अजीत वसंत ने जांच के आदेश दिए, जिसके बाद घोटाले का पर्दाफाश हुआ। अब दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।
कैसे हुआ करोड़ों का खेल?
छत्तीसगढ़ शासन के आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के तहत कोरबा जिले के विभिन्न छात्रावासों और आश्रमों में मरम्मत एवं लघु निर्माण कार्यों के लिए करीब 6.62 करोड़ रुपये का बजट जारी किया गया था। इसमें से 4.36 करोड़ रुपये की राशि सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास कोरबा को छात्रावासों एवं आश्रमों में कार्य कराने के लिए दी गई थी। परियोजना प्रशासक, एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना कोरबा के निर्देशानुसार विभिन्न एजेंसियों और ठेकेदारों को कार्य सौंपा गया था। लेकिन जब जांच हुई तो सामने आया कि ठेकेदारों को भुगतान तो कर दिया गया, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हुआ। यानी बगैर मरम्मत या निर्माण के ही सवा 4 करोड़ रुपये ठेकेदारों की जेब में चले गए।
शिकायत पर कलेक्टर ने गठित की जांच समिति
इस गंभीर वित्तीय अनियमितता की शिकायत मिलने पर कलेक्टर अजीत वसंत ने अपर कलेक्टर सहित अधिकारियों की एक टीम बनाकर जांच कराई। जांच में साफ हुआ कि ठेकेदारों को भुगतान किया गया, लेकिन काम जमीनी स्तर पर नहीं हुआ।
इस मामले में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण एवं एंटी करप्शन ब्यूरो (EOW/ACB) ने भी संज्ञान लिया और कोरबा कलेक्टर से जांच प्रतिवेदन भेजने के लिए पत्र लिखा। इसके बाद कलेक्टर ने अपर कलेक्टर की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की।
ठेकेदारों को 1 अप्रैल तक की मोहलत, नहीं तो होगी सख्त कार्रवाई
जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद अब प्रशासन ने दोषी ठेकेदारों को 1 अप्रैल 2025 तक का समय दिया है। इस दौरान उन्हें या तो निर्धारित कार्य पूरा करना होगा या भुगतान की गई राशि को सरकारी खाते में जमा करना होगा।
अगर ठेकेदार तय समय तक काम नहीं कराते हैं या पैसे वापस नहीं करते हैं, तो उनकी फर्म को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा। साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी।
तकनीकी निरीक्षण में भी खुली पोल
जांच समिति के निर्देश पर जब तकनीकी अमले ने छात्रावासों और आश्रमों का निरीक्षण किया, तो यह पुष्टि हुई कि जो कार्य कागजों पर दिखाए गए हैं, वे वास्तव में किए ही नहीं गए।
