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भाजपा के प्रयासों से पिछड़ा वर्ग को मिल रहा अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण, कांग्रेस इसे शून्य करवाना चाहती थी – साव

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रायपुर। हमने इस बात को सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है कि अनारक्षित सीटों पर पिछड़े वर्ग को अधिक प्रतिनिधित्व देंगे। इससे पहले की स्थिति बहाल रहेगी एवं पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आएगी। कांग्रेस केवल झूठ की राजनीति करती है, वह मुद्दों के अभाव से जूझ रही है राजनीतिक पतन की तरफ बढ़ रही है इसलिए केवल वर्ग संघर्ष की बात करना, प्रदेश में माहौल खराब करने का प्रयास करना, षड्यंत्र करना यही कांग्रेस का काम रह गया है। कांग्रेस ने तो वास्तव में ओबीसी आरक्षण के विरोध में कोर्ट जाने वाले और ओबीसी का आरक्षण रोकने वाले लोगों को पुरस्कृत करने का काम किया है। कांग्रेस हमेशा पिछड़ा वर्ग का विरोधी रही है। वह आरक्षण के खिलाफ रही है। तब की कांगेस सरकार द्वारा कालेलकर आयोग की अनुशंसा को ठंडे बस्ते में डाल देने के बाद आगे फिर मंडल आयोग तक का इंतज़ार करना पड़ा। उक्त बातें भाजपा प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में उपमुख्यमंत्री अरुण साव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कही। प्रेस वार्ता में मंत्री टंकराम वर्मा, लक्ष्मी राजवाड़े, प्रदेश महामंत्री भरत वर्मा, भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी, सह प्रभारी अनुराग अग्रवाल भी उपस्थित थे।
साव ने कहा कि पंडित नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक के आरक्षण विरोधी वक्तव्यों के अनेक संदर्भ आपको गाहे ब गाहे दिख भी जायेंगे। मसलन 1961 में मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में पंडित नेहरु ने कहा था कि आरक्षण से अक्षमता और दोयम दर्जे का मानक पैदा होता है। इंदिरा गांधी ने मंडल आयोग की संस्तुति से किनारा कर लिया था। राजीव गांधी ने तो यहां तक कह दिया था कि आरक्षण से हम बुद्धुओं को बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार बार-बार प्रमाणित हुआ है कि कांग्रेस पूरी तरीके से आरक्षण विरोधी रही है। साव ने कहा कि देश के संसद में 73वां 74वां संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा सशक्त और जवाबदेह पंचायत एवं नगर पालिका बनाने का प्रावधान संविधान में किया गया और साथ ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े हुए नागरिकों के किसी भी वर्ग के पक्ष में आरक्षण के लिए उपबंध (प्रावधान) करने का अधिकार राज्य के विधान मंडल को दिया गया है। साथ ही सभी वर्ग में महिलाओं के लिए भी आरक्षण से संबंधित उपबंध (प्रावधान) दिये हैं। अनुच्छेद 243 (घ) में पंचायतों के स्थानों के आरक्षण से संबंधित प्रावधान है, जिसमें 243(घ)(1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का प्रावधान है। 243(घ)(2) में महिलाओं से संबंधित आरक्षण का प्रावधान और 243(घ)6 में पिछड़े हुए नागरिकों के लिए आरक्षण के संबंध में उपबंध है। इस प्रकार नगर पालिकाओं में आरक्षण से संबंधित प्रावधान 243(न) में उपबंधित है, जिसमें 243(न) (1) में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के उपबंध है। 243(न)(2) में महिलाओं के आरक्षण से संबंधित उपबंध है एवं 243(न)(6) में कमजोर वर्गों से संबंधित आरक्षण के उपबंध है।
नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 में धारा (11) स्थानों में आरक्षण से संबंधित उपबंध है, जिसमें धारा (11) (1) में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। धारा (11) (2) में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का उपबंध करता है एवं धारा (11) (3) में महिलाओं के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। इसी प्रकार नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 29 (क) में स्थानों में आरक्षण से संबंधित उपबंध है। 29 (क)(1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है। 29 (क)(2) अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है। 29 (क)(3) में महिलाओं से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है।
इसी प्रकार छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 13 में ग्राम पंचायत के गठन से संबंधित उपबंध है, जिसमें धारा 13 (4)(1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। 13 (4)(2) अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आरक्षण का उपबंध करता है एवं 13 (4)(5) महिलाओं के लिए आरक्षण का उपबंध करता है। उक्त में पंचायत एवं नगर पालिकाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान इस प्रकार थे कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को मिलाकर 50त्न या 50त्न से आरक्षण कम होने पर अन्य पिछड़ा वर्ग को एकमुश्त 25त्नआरक्षण देने का प्रावधान था।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलाकर कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होने को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसमें किशोर कृष्ण राव गवली विरूद्ध महाराष्ट्र शासन आदेश 04.01.2021 और सुरेश महाजन विरूद्ध मध्यप्रदेश शासन आदेश 10.05.2022 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने कुल आरक्षण 50 प्रतिशत तक सीमित करने एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट करने की अनिवार्यता प्रतिपादित किया। उक्त प्रावधान के अनुपालन में राज्य सरकार नें 16.07.2024 के द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया और आयोग ने प्रदेश के पिछड़े वर्ग की वर्तमान सामाजिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक स्थिति का अध्ययन कर सुझाव एवं अनुशंसाए 24.10.2024 को राज्य शासन को प्रस्तुत किया। उक्त प्रतिवेदन में आयोग द्वारा वर्तमान में पंचायत एवं स्थानीय निकायों में आरक्षण की एकमुश्त सीमा 25 प्रतिशत को शिथिल कर अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या के अनुपात में 50त्न की सीमा तक आरक्षण का प्रावधान किया जाये। उक्त प्रतिवेदन को मंत्रिपरिषद् द्वारा 28.10.2024 को स्वीकृति प्रदान की गई। तदनुसार छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993, नगर पालिका निगम 1956 एवं नगर पालिका अधिनियम 1961 में सुसंगत धाराओं में संशोधन किया गया। उपरोक्त के अनुसार पंचायतों एवं नगरीय निकायों में आरक्षण किया गया।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अनुपालन में किये गये आरक्षण में जनसंख्या के अनुपात में किये गये आरक्षण के कारण नगरीय निकाय के आरक्षण में विशेष अंतर नहीं पड़ा, परन्तु ग्रामीण क्षेत्र में 33 में से 16 जिले अधिसूचित जिले है तथा राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 12.72 प्रतिशत है। उस अनुपात में 4 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई है। इस तरह से कुल 33 में से 20 सीटें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुई, जोकि 50 प्रतिशत से अधिक है। इसलिए अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष का कोई पद आरक्षित नहीं हो पाई है। जबकि जिला पंचायत सदस्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष, जनपद पंचायत सदस्य, सरपंच, पंच के पदों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए नियमानुसार पद आरक्षित हुए है। इस प्रकार राज्य सरकार ने जो आरक्षण निर्धारित किया है, वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नियमानुसार ही है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त दोनों फैसले सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू है तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट करना अर्थात् आयोग का गठन करना एवं उसके अनुशंसा को राज्य सरकार द्वारा स्वीकार करना बंधनकारी है। इसी के पालन में मध्यप्रदेश, बिहार, उड़ीसा जैसे राज्यों ने भी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए पंचायत एवं नगरीय निकायों में प्रावधान करके चुनाव कराया है, जबकि झारखण्ड जैसे राज्य हैं जहां पर आयोग का प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं होने के कारण अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए बिना 2021-22 में राज्य निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत संस्थाओं का चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई भी सीट आरक्षित किये बिना चुनाव संपन्न कराया है।

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