राज्य में 13 नवंबर को होने वाले उपचुनावों को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। इस बार, समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस एक बार फिर मिलकर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, जिससे इंडिया गठबंधन को मजबूत बनाए रखने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। हाल के समय में, सपा और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर बातचीत में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, लेकिन अब स्थिति बेहतर होती नजर आ रही है।
सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच हुई बातचीत में सपा ने कांग्रेस को एक और सीट छोड़ने की सहमति जताई है। पहले, सपा ने कांग्रेस को दो सीटें देने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन कांग्रेस के नाराज होने के बाद यह संख्या बढ़कर तीन हो गई है। इस बदलाव के पीछे सपा की इच्छा है कि वह इंडिया गठबंधन की एकता को बनाए रखे, जिससे चुनावी मैदान में मजबूती से उतर सके।
अखिलेश यादव की पार्टी इस बात को भी ध्यान में रख रही है कि सपा महाराष्ट्र में भी चुनाव लड़ रही है, और वहां कांग्रेस से सीट साझा करने की संभावनाएं तलाश रही है। कहा जा रहा है कि सपा कांग्रेस को फूलपुर सीट देने के लिए तैयार है, जो पहले से ही उनकी उम्मीदवार सूची में शामिल थी। इस सीट को कांग्रेस के खाते में डालने की वजह को सपा के भीतर प्रेशर पॉलिटिक्स के रूप में देखा जा रहा है।
इस बीच, सपा ने कुछ उम्मीदवारों की घोषणा भी की है। मैनपुर जिले की करहल से तेज प्रताप यादव को टिकट दिया गया है, जबकि सीमामऊ से नसीम सोलंकी, फूलपुर से मुस्तफा सिद्दकी, अयोध्या की मिल्कीपुर से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद, कटेहरी से शोभावती वर्मा, और मंझवा से रमेश बिंद के बेटे डॉ. ज्योति बिंद को उम्मीदवार बनाया गया है। मीरापुर विधानसभा से पूर्व सांसद कादिर राणा की बहू सुम्बुल राणा भी सपा की उम्मीदवार होंगी।
यह सियासी गणित दोनों दलों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आगामी उपचुनाव केवल एक राजनीतिक प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह भविष्य की राजनीति के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। अब देखना यह होगा कि सपा और कांग्रेस की यह नई साझेदारी चुनावी परिणामों पर किस तरह का असर डालती है।