महारास लीला जीवन की सूत्रधार है – मनोज कृष्ण शास्त्री
रायपुर। भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला वास्तव में जीवन की मुख्य सूत्रधार है। भगवान की भक्ति, भगवान के प्रति भाव और भक्ति भाव के मध्य में अभिमान और ज्ञान का आ जाना यह सकेत देता है कि भगवान को अभिमान कतई पसंद नहीं है। मन में अभिमान आने से भगवान वहां से अदृश्य हो जाते है। यह महारास लीला केवल आनंद लेने के लिए ही नहीं बल्कि जीवन में उतारने के लिए है। श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते हुए महारास लीला प्रसंग के आने पर यह दृष्टांत कथावाचक मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने श्रद्धालुजनों को बताया।
उन्होंने बताया कि भगवान को सबकुछ पसंद है लेकिन यदि व्यक्ति के मन में अधिकार और अहंकार आ जाए तो वह भगवान को मान्य नहीं है, फिर वह चाहे कितना भी बड़ा भक्त और साधक ही क्यों न हो। महारास लीला में भगवान श्रीकृष्ण ने सभी बृज की गोपियों को महारास लीला के लिए आमंत्रित किया। इस रासलीला में तीनों कांडों के मंत्ररुपी गोपियां भी शामिल हुई। इस दौरान गोपियों ने भगवान से सवाल भी किए। महारास लीला में आने से पहले भगवान ने कहा कि पति चाहे कैसा भी हो पत्नी को कभी उसका परित्याग नहीं करना चाहिए। तब गोपी ने सवाल किया कि यदि पति परदेश चला गया हो तो क्या करना चाहिए, तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि पति की फोटो रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए, भोग लगाना चाहिए और उसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। तब गोपी ने पूछा कि यदि ऐसा करते समय साक्षात पति उपस्थित हो जाए तो फिर क्या करना चाहिए, तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि ऐसे समय में फोटो की पूजा छोड़कर साक्षात पति की पूजा करनी चाहिए। इस पर गोपियों ने कहा कि वही तो हम कर रहे है, जब भगवान साक्षात हमारे सामने खड़े है तो यही हमारे सर्वेसर्वा है तो फिर फोटोरुपी पति की क्या आवश्यकता। गोपी के इस भाव से भगवान निरुत्तर हो गए। महारास लीला के दौरान भगवान कामदेव भी वहां आए और उन्होंने भी भगवान की परीक्षा लेनी चाहिए और गोपियों के मन के अंदर जैसे ही उन्होंने प्रवेश किया और उनके मन में जो भाव था उसमें परिवर्तन आते ही भगवान वहां से लुप्त हो गए क्योंकि गोपियों के मन में अपने सौंदर्य का अभिमान आ गया था।
गिरिराज पर्वत को उंगली में धारण करने के प्रसंग पर शास्त्री जी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने उंगली पर पर्वत धारण किया और इंद्र ने भगवान की स्तुति की तो भगवान इंद्र पर प्रसंन्न हो गए और उन्हें कुछ नहीं कहा और उन्हें जाने दिया। वहीं दूसरी ओर ब्रम्हा ने बृजवासियों की गायों की चोरी कर ली तो भगवान की स्तुति करने के बाद भी वे ब्रम्हा पर प्रसन्न नहीं हुए। इसका अर्थ यह है कि इंद्र ने जो बृज पर वर्षा की उससे समस्त बृजवासी और गाये भगवान के पास आ गए, वहीं ब्रम्हा ने गाये चुराई तो बृजवासी गायो को ढूढ़ाने के लिए उनसे दूर हो गए और यह भगवान को कतई पसंद नहीं है कि कोई उनके भक्तों को उनसे दूर करें।