Chhattisgarh

मां बम्लेश्वरी मंदिर विवाद: परंपरा, आस्था और अधिकार की टकराहट

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डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर में नवरात्र पर्व के दौरान शुरू हुआ विवाद अब सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक रंग ले चुका है। विवाद की शुरुआत पंचमी पूजा से हुई, जब खैरागढ़ राजपरिवार के वंशज राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार पूजा की। मंदिर ट्रस्ट ने इस पूजा को बलि प्रथा से जोड़ते हुए आपत्ति जताई और पुलिस प्रशासन से शिकायत की। इसके बाद राजकुमार ने आरोप लगाया कि उनके परिवार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, जबकि पूजा में किसी भी प्रकार की बलि नहीं दी गई थी। उन्होंने अपनी सुरक्षा की मांग करते हुए प्रशासन से कार्रवाई की अपील की है। वहीं, दूसरी ओर सर्व छत्तीसगढ़ आदिवासी समाज ने दावा किया है कि मां बम्लेश्वरी देवी आदिकाल से गोंड़ आदिवासी समाज की आराध्य देवी रही हैं और मंदिर ट्रस्ट बनने के बाद से आदिवासी समाज को पूजा-पाठ से अलग कर दिया गया है। इस मामले को लेकर राजनांदगांव में आयोजित आदिवासी महापंचायत में ट्रस्ट को भंग करने, दोषियों पर कार्रवाई करने और मंदिर की जिम्मेदारी आदिवासी समाज को सौंपने की मांग की गई है। समाज ने 15 नवंबर को प्रदेशव्यापी आंदोलन और महाबंद की घोषणा की है। प्रशासन ने दोनों पक्षों से संवाद कर समाधान निकालने का भरोसा दिया है, लेकिन फिलहाल कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। आस्था, परंपरा और अधिकार की इस खींचतान के बीच मां बम्लेश्वरी मंदिर, जो अब तक एकता का प्रतीक माना जाता था, विवाद के केंद्र में आ गया है।

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