मर्यादा व संस्कार का पालन कैसे किया जाता है श्रीराम – सीता के चरित्र से सीखें – मंदाकिनी दीदी

00 कथा श्रवण के बाद भी मन की मलीनता नहीं गई तो न चरित्र सुधरेगा न विचार
रायपुर। आज प्रेम का इजहार करने कथित तौर पर लोग वैलेंटाइन डे जैसे अवसर खोजते हैं। जहां न हमारी संस्कृति होती है और न ही मर्यादा। ऐसे लोगों ने पवित्र प्रेम की परिभाषा ही बदल दी है। मर्यादा व संस्कार का पालन कैसे किया जाता है इसका दर्शन करना है तो रामचरित मानस में श्रीराम व सीता जी के पुष्पवाटिका में मिलन से कर सकते हैं। जहां एक भी शब्द की वाणी का प्रयोग किशोरी जी के सामने नहीं किया। यही सब जानने तो कथा में आते हैं लेकिन कथा श्रवण करने के बाद भी उसे ग्रहण नहीं किया और अंत:करण की मलीनता भी नहीं गई तो न आपके चरित्र व विचारों में परिवर्तन होगा और न शुद्धता आयेगी। पाना तो हम आप भी प्रभु को चाहते हैं पर सीताजी जैसी व्याकुलता नहीं है। धर्मपरायण, कर्तव्यपरायण, बड़ों का आदर करना जैसे एक-एक सूक्ष्म गुण तत्व मानस में बताये गए हैं।
सिंधु भवन शंकरनगर में श्रीराम कथा के समापन दिवस पर मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी ने बताया कि पुष्पवाटिका में जब सीता जी के साथ मिलन होता है प्रभु श्रीराम का तब उनके हृदय में भी काव्य रस का सृजन हुआ, श्रृंगाररस हिलोरे लेने लगा। वे श्रृंगाररस की कविता सुनाना तो चाहते है लेकिन श्रोता भी बनाया तो किसे अपने भाई लक्ष्मण को। राजा दशरथ को जो चार पुत्र फल के प्रतीक है और वे है अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष। इन अर्थो में लक्ष्मण जी काम के प्रतीक है और जहां श्रृंगाररस का वर्णन हो रहा है तो यहां काम का होना बहुत जरुरी है इसलिए यहां लक्ष्मण की उपस्थिति परम आवश्यक है।
दीदी मां कहती है कि आज की पीढिय़ों को वे कैसे समझाएं ,क्या संदेश दें और क्या बोले? मानस के इस गूढ़ प्रसंग को समझे जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते है कि कभी उन्होंने पर स्त्री का दर्शन नहीं किया है मेरे इस पवित्र मन को आज क्या हो गया है मुझे अपने पर भरोसा नहीं, पर लक्ष्मण तुम तो वैराग्य रुप हो तुम मेरी मदद करो क्योंकि मेरे हृदय में राग का उदय हुआ है। मानस के इस प्रसंग में अद्भुत व्याख्या है कि आज भी कहीं न कहीं प्रभु इस संसाररूपी वाटिका में किसी न किसी रुप में घूम रहे है कि उन्हें कोई खिला हुआ सुमन मिल जाए और उसका चयन कर लें। निराश मत होहिए, अगर आपको लगे हमारे अंदर भक्ति रस का प्रार्दुभाव नहीं हुआ है हृदय में, हम अपूर्ण है, हम असमथ्र्य है तो करुणा संत की है जो प्रभु से मिलन का मार्ग बताते हैं।
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