व्यवस्था के लिए कुछ चीजों का करना जरूरी हो जाता है-मैथिलीशरण भाई जी
रायपुर। कुर्सियों पर जो आरक्षित शब्द लिखा जाता है वह विशेषकर नहीं लिखा जाता, जो आरक्षित पर बैठे है वह विशेष है और आरक्षित पर नहीं बैठे है वह आम है। ऐसा भ्रम न आरक्षित सीट पर बैठे व्यक्ति में आना चाहिए और न ही आम सीट पर बैठे व्यक्तियों को इस प्रकार की सोच रखना चाहिए और ना ही लाना चाहिए कभी। व्यवस्था की कुछ चीजें होती है जिसके तहत कुछ चीजे करनी पड़ती है जैसे हमें बिठा दिया गया है। हम कोई यहां बैठने लायक थोड़ी है बिठा दिए गए है। जिस व्यक्ति को आप सबसे अधिक मानते है उससे कोई भी काम करा लेते है यह इस बात का प्रतीक है कि आपका अधिकार उस पर है। जिनके लिए किसी को कुर्सी पर बिठाया जाता है वह महत्वपूर्ण दिखाई दे रहा है लेकिन जिनको उठाया जाता है वह हृदय में निवास करता है। जो मस्तिष्क पर तिलक लगाता है भगवान की स्मृति देखकर उस पर आती है। श्रीरामकिंकर विचार मिशन प्रवचन माला के 16 वें वर्ष में मैक आडिटोरियम समता कालोनी में श्री रामकिंकर विचार मिशन के मैथिलीशरण भाईजी ने रामचरित्र मानस के गूढ़तम प्रसंगों में से संदर्भित कई बातें श्रद्धालुजनों को बताई।
भाई जी ने बताया कि कुंभ वहां पर है जहां पर ज्ञान की सरस्वती,भक्ति की गंगा और कर्म की यमुना बह रही है। कुंभ में जितने लोग जाएंगे वह तो धन्य है ही लेकिन कुंभ में कुंभ की जो स्मृति करेंगे, कुंभ का जो दर्शन करेंगे वह महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आपका हृदय, आपका मन कहां पर है। आज कल दर्शन करने के लिए कहीं पर जाने की जरुरत ही नहीं पड़ती है क्योंकि आपके मोबाइल फोन पर सब कुछ आपको लाईव देखने को मिल जाता है और सुंदर दर्शन हो जाता है। सीता जी का जन्म शरीर से नही हुआ है, भगवान राम का जन्म शरीर से हुआ है। यह पुरातत्व है, जब कोई बात कही जाती है तो गुरुदेव पूज्य रामकिंकर महाराज हमेशा कहा करते थे आपको लगता है मैं बोल रहा हूं लेकिन जो बोलने वाला है सुनता पहले है बोलता बाद में है। जो वक्ता श्रोता नहीं होगा वह वक्ता नहीं हो सकता। आप जब सुनेंगे उसका कारण क्या है सुनेंगे का तात्पर्य यह है कि आप कोई भी बात नहीं नहीं कह रहे है। देश जाने कितने भक्त आए है जो पूज्य रामकिंकर महाराज का नाम लेकर अपनी बातें कहते है, जो नाम लेकर बात कहते है वह नाम लेने के बाद और बड़े हो जाते है। नाम लेकर जब आप बात कहते है उस समय आप छोटे नहीं होते है। अगर कोई व्यक्ति यह कहें कि गोस्वामी तुलसी दास से मैंने ज्यादा सोचा है तो मैं व्यासपीठ से उठकर चला जाऊंगा। कथा कहां से शुरु करने की बात सोची जाती है और कथा से शुरु हो जाएगी यह वक्ता के हाथ में नहीं होता है, वक्ता सिर्फ चौकी पर, व्यासपीठ पर बैठने से पहले हो सकता है लेकिन जहां पर वो वंदना करता है अपने आप को अर्पित करता है ग्रंथ को तो,उसके हाथ में बागडोर नहीं रहती है, फिर बागडोर उसके हाथ मे होती है जो कथा करता है। आप जो बोल रहे है, आप जो देख रहे है, आप जो चल रहे है आप जो कर रहे है, वह आप कर रहे है क्या? आप नहीं कर रहे है, आप अगर कर रहे होते तो भगवान श्रीराम ने तारा से यही कहा। तारा जब बालि के विलास में रोने लगी तो भगवान राम ने कहा क्यों रो रही है, तो उसने कहां हमारे पति का वध हो गया, ये नहीं कहा कि बाण मारा आपने। तब भगवान राम ने कहा यह विचित्र बात है वध हो।
भाईजी ने कहा कि मृत्यु क्या होती है उस मिथ्या को भगवान ने अपनी वाणी से साकार किया। जिससे शरीर का निर्माण होता है वह शरीर तो सामने है, पृथ्वी, जल, वायु, तेज और आकाश से हमारे शरीर का निर्माण होता है। जब आप अपने घर का निर्माण करें तो कहां पर आप रहेंगे उसमें पंचतत्व का ध्यान करके यदि आप अपने घर का निर्माण करेंगे तो वह घर आपके लिए परम शुभ होगा, परम शांति देने वाला होगा। परम सुख देने वाला होगा। लेकिन हैं उनके लिए नहीं कह रहा हंू जो लोग फ्लैट में रहते है या छोटे घरों मे रहने वाले जिनके पास व्यवस्था नहीं होती है, लेकिन जहां पर आपके हाथ में है व्यवस्था करना हो तो वहां पर आप जरुर करें। आपके घर में कोई एक स्थान ऐसा अवश्य होना चाहिए, पृथ्वी तो सब जगह है, जहां बरसात का जल आपके घर के अंदर अवश्य गिरें जो आपका लॉन हो, टेरिस हो या कैसा भी हो। वायु जहां हवा सीधी आ सकें, हवा आ सकें नहीं हवा आती वहां पर है जहां उसके निकलने की भी व्यवस्था हो जिसको आप अपनी भाषा में क्रॉस एप्लीमेंट कहते है। हवा आएगी वहां जहां से हवा को निकलने का मार्ग दे दिया जाएगा। इसी प्रकार से धन आएगा वहां जहां धन को निकलने का रास्ता मिल जाएगा। यह उपदेश नहीं है परम सत्य है। आप इसको उपदेश मानेंगे तो छोड़कर चले जाएंगे और रख लेंगे तो ध्यान दीजिएगा आपका जीवन आनंदमय हो जाएगा।