हसदेव अरण्य खनन मामला: हाईकोर्ट ने सामुदायिक वन अधिकारों पर दायर याचिका खारिज की

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ दायर याचिका पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए ग्राम घठबार्रा के निवासियों की याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि सामुदायिक वन अधिकार (Community Forest Rights) का कोई ठोस दावा सिद्ध नहीं हुआ है, क्योंकि ग्रामसभा की 2008 और 2011 की बैठकों में केवल व्यक्तिगत भूमि अधिकारों की चर्चा हुई थी, सामुदायिक अधिकारों का कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की एकलपीठ ने कहा कि हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति कोई वैधानिक संस्था नहीं है और वह ग्रामसभा या ग्रामीणों की ओर से दावा करने की पात्र नहीं है। राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि कोल ब्लॉक का आवंटन संसद द्वारा पारित कोल माइंस (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट, 2015 के तहत हुआ है, जो अन्य कानूनों पर प्राथमिकता रखता है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार के वर्ष 2012 और 2022 के आदेशों को सही ठहराते हुए पारसा ईस्ट एवं केते बासन (पीईकेबी) कोल ब्लॉक फेज-1 और फेज-2 में खनन को वैध घोषित किया। कोर्ट ने यह भी माना कि खनन की मंजूरी के लिए आवश्यक सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है और सामुदायिक अधिकारों के उल्लंघन का कोई वैधानिक प्रमाण नहीं है। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए खनन परियोजना को वैध और कानूनसम्मत ठहराया।
