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भाव के अनुरुप भगवान जीव को गति प्रदान करते हैं – मनोज कृष्ण शास्त्री

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रायपुर। जिस भाव से भगवान का ध्यान,पूजन किया जाता है भगवान उसी भाव के अनुसार उस जीव को गति प्रदान करते है। मनुष्य को अपने जीवन में कभी भी अविज्ञा को स्थान नहीं देना चाहिए क्योंकि अविश्रा कभी किसी का भला नहीं करती और न ही किसी की भलाई के बारे में सोच सकती है। श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते हुए पुतना का प्रसंग आने पर कथावाचक मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने श्रद्धालुजनों को यह बातें बताई।

भाव के अनुरुप भगवान जीव को गति प्रदान करते हैं - मनोज कृष्ण शास्त्री
पुतना दृष्टांत का वर्णन करते हुए शास्त्री जी ने कहा कि पुतना अविज्ञा का कारक है जिसके जीवन में अविज्ञा का स्थान होता है उसमें सोचने और समझने और दूसरों की भलाई की बातें हो ही नहीं सकती। उन्होंने कहा कि राम अवतार में भगवान श्रीराम ने ताड़का का और श्रीकृष्ण अवतार में पुतना का वध किया, यह दोनों ही राक्षिसियों का वध मनुष्य के जीवन को शिक्षा दायक है। जो यह कहते है कि हमें कैसे इससे बचना चाहिए और इनसे दूर रहना चाहिए। महाराश्री ने कहा कि परमात्मा को आडंबर कतई पसंद नहीं है, यदि परमात्मा के पास आडंबर लेकर उनके पास जाने से वास्तविक रुप में सामने आ जाते है। जिस भाव से परमात्मा की भक्ति की जाती है परमात्मा उसी भक्ति भाव के अनुसार जीव को गति प्रदान करते है। पुतना ने राक्षसी होकर भी भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान कराया और भगवान ने उसे माँ की गति प्रदान की।

भाव के अनुरुप भगवान जीव को गति प्रदान करते हैं - मनोज कृष्ण शास्त्री
भगवान के नामकरण के लिए आए गर्गाचार्य के प्रसंग पर शास्त्री जी ने कहा कि समाधि के कई प्रकार है – ध्यान, भाव, प्रेम, सहज और प्रातक। गर्गाचार्य नामकरण करने आए थे और उसी दरम्यान यशोदा और रोहिणी ने पुत्रों की अदला-बदली कर ली जिसे गर्गाचार्य ने अपनी योग साधना से जान लिया था। जब वे भगवान के नामकरण के लिए उनकी ओर देखा तो वे समझ गए कि ये कोई सामान्य बालक नहीं बल्कि ये तो साक्षात परमात्मा है और ये बातें मैं समको बता दूंगा। उनके मनोभाव को भगवान श्रीकृष्ण ने पढ़ लिया और उनका मुंह और आँखें खुली की खुली रह गई। वे भगवान के इस रुप में पूरी तरह से लीन हो गए, फिर उन्हें किसी भी प्रकार का कोई ध्यान नहीं रहा। समाधि ऐसी ही होती है जब समाधि में होते है तो तन, मन और भाव सबकुछ परमात्मा के चरणों में होता है और आसपास क्या हो रहा है उसका भान नहीं होता। यही स्थिति गर्गाचार्य की हो गई, उनका ध्यान यशोदा और रोहिणी ने भंग किया तो भी उन्हें इसका पता नहीं चला। वे कहने लगे ये तो भगवान का नाम क्या रखना है इसी सोच में डूबे रहे।

भाव के अनुरुप भगवान जीव को गति प्रदान करते हैं - मनोज कृष्ण शास्त्री
वृंदावन के राकिशन शर्मा जी की रासलीला मंडली द्वारा नृत्य वाटिकाओं का सजीव मंच किया जा रहा है उसे देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन पहुंच रहे है।

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