जूट के रेशों से किसान बुनेंगे तरक्की के धागे, प्रति एकड़ फसल से होगी पचास हजार की आमदनी

रायपुर। छत्तीसगढ़ के किसान जूट के धागों से अपनी तरक्की की नई राह गढ़ेंगे। राज्य में जूट की खेती की संभावनाए तलाशने तथा इस फसल के क्षेत्र विस्तार के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में संचालित अखिल भारतीय जूट अनुसंधान परियोजना के तहत महती प्रयास किये जा रह है। जूट की फसल को बढ़ावा देने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आईआईटी भिलाई के तकनिकी सहयोग तथा आई.बी.आई.टी.एफ. के वित्त पोषण से यह परियाजना संचालित की जा रही है। विश्वविद्यालय द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र धमतरी के सहयोग से धमतरी जिले में 4 एकड़ क्षेत्र में जूट की खेती कराई गई थी, जो अब कटने को तैयार है। इससे पूर्व जून और सितम्बर में कृषि विज्ञान केंद्र धमतरी, कृषि विज्ञान केंद्र रायपुर और कृषि विज्ञान केंद्र दंतेवाड़ा के माध्यम से कृषक प्रशिक्षण का आयोजन जून और सितम्बर में भी किया गया था। परियोजना के तहत लगाई गई जूट की फसल अब कटाई के लिए तैयार है जिससे किसानों को प्रति एकड़ लगभग पचास हजार रूपये की आय मिलने की उम्मीद है और किसानों के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती है।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक विस्तार सेवायें डॉ. एस.एस. टुटेजा के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केंद्र धमतरी के प्रमुख डॉ. ईश्वर सिंह, वैज्ञानिक डॉ. दीपिका चंद्रवंशी और डॉ. प्रेम लाल साहू के सहयोग से कृषकों को जूट की खेती के लिए प्रेरित किया गया। विगत दिवस कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा पांडे एवं कृषि विज्ञान केन्द्र धमतरी के वैज्ञानिक डॉ. प्रेम लाल साहू द्वारा कृषकों के खेतों का भ्रमण किया गया तथा जूट की तैयार फसल का जायजा लिया गया। किसानों से चर्चा दौरान किसानों ने बताया कि जूट की फसल लगभग 100 दिन में तैयार हो जाती है। जूट की कटाई फूल आने से पहले की जाती है और फिर कटाई के बाद 15-20 दिनों तक जूट के पौधों को पानी में डुबोकर सड़ाया जाता है। इस प्रक्रिया से जूट के तने से रेशे अलग हो जाते हैं, जिन्हें धोकर निकाल लिया जाता है। अब किसान इसे गर्मी की फसल के रूप में उगाने की तैयारी कर रहे हैं। जूट के हरे डंठलो से 6-8 प्रतिशत रेशों की प्राप्ति होती है। 2025-26 सीज़न के लिए कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य (डैच्) ₹5,650 प्रति क्विंटल है, जो पिछले विपणन सीज़न की तुलना में ₹315 प्रति क्विंटल ज्यादा है। जूट के रेशे को उनकी गुणवत्ता के आधार पर टोसा जूट रेशों में TD1 से TD5 ग्रेड में वर्गीकृत किया जाता है, जहां TD1 उच्चतम गुणवत्ता वाला और TD5 निम्नतम गुणवत्ता वाला होता है। ये ग्रेड विभिन्न कारकों द्वारा निर्धारित होते हैं। TD1 (सर्वोत्तम ग्रेड),TD2 (अच्छा ग्रेड), TD3 (औसत ग्रेड),TD4 (खराब ग्रेड),TD5 (निम्नतम ग्रेड) को दर्शाता है। औसत जूट उत्पादन और उपज औसत जूट की उपज खेती की पद्धतियों और विशिष्ट किस्मों पर निर्भर करती है, लेकिन सामान्यतः मानक और उन्नत विधियों का उपयोग करते हुए एक एकड़ जूट की खेती से 18-20 टन हरे पौधे और 0.8-1.0 टन कच्चा रेशा प्राप्त होता है। इससे किसानों को प्रति एकड़ लगभग पचास हजार रूपये की आय प्राप्त होती है। धमतरी और अन्य जिलों के किसान अब जूट की खेती को एक लाभकारी विकल्प के रूप में देख रहे हैं, जो उन्हें न केवल उनकी कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत बना सकता है।







