भागवत कथा कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं, मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति का साधन है – आचार्य झम्मन शास्त्री

रायपुर। मानव जीवन बड़ा ही दुर्लभ जीवन है। यह बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है ,मनुष्य जीवन में ही परमात्मा तत्व की प्राप्ति सुलभ हो सकती है। भागवत कथा का आनंद भी इस मनुष्य जीवन में ही जीव को प्राप्त होता है। अन्य योनियों में नहीं क्योंकि मनुष्य भजन, दान ,पूजन, जप,तप इत्यादि करने में सक्षम है। इस मृत्यु लोक में सांसारिक सुख साधनों का भोग करता हुआ। सेवा दान भजन द्वारा परलोक में काम आने वाला पुण्य भी कमा लेता है। जिन पुण्य के द्वारा परलोक से सुख भोंगते हुए परमात्मा की प्राप्ति कर लेता है ,जरूरी नहीं है जो कुछ मनुष्य ने संग्रह किया वह भोग स्वरूप प्राप्त हो क्योंकि वह कभी भी मृत्यु का ग्रास बन सकता है। इसलिए मनुष्य को सेवाधर्म, दान ,भजन के द्वारा अपने जीवन को सार्थक कर लेना चाहिए ,क्योंकि यह जीवन बड़ा ही अनमोल है।
भागवत कथा आयोजन कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं है। यह मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति का साधन है।लेकिन आजकल के कथाकार व्यास पीठ की मर्यादाएं लांघ रहे हैं। अग्रोहा कालोनी विप्रनगर विष्णु मंगलम् भवन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के अंतर्गत आचार्य पंडित झम्मन शास्त्री ने बताया कि वैसे ही गज ,ग्राह ,गणिका भी श्री हरि के नाम के प्रभाव से मुक्ति को प्राप्त किये। आज राम नाम नृरसिंह भगवान है। कलयुग हिरण्यकश्यप के समान है। जप करने वाला मनुष्य प्रहलाद के समान है। कलयुग में दान की विशेष महत्व बताते हुए महाराज श्री ने बली की दानवीरता का वर्णन किया। प्रहलाद के पौत्र महाराज बलि ने भगवान श्री वामन को अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। समग्र समर्पण करने वाले के यहां स्वयं भगवान ही उनके रक्षक बनकर रहते हैं। सुतल लोक में आज भी भगवान उनके द्वारपाल है। जहां स्वयं माता लक्ष्मी भी मनुष्य वंश में बली को भाई के रूप में सूत्र बांधकर दक्षिणा के रूप में अपने पति भगवान श्री नारायण को मांगने गई थी।जीवन में उपासना करने वालों को मां लक्ष्मी के साथ साथ भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए।हमारे यहां एक-एक अवतार के एक-एक पुराण की रचना हुई है। इस कथा का विस्तार वामन पुराण में तथा मत्स्य पुराण में है।
आचार्य श्री शास्त्रीं समुद्र मंथन एवं वामन अवतार की कथा संदर्भ में बताया कि भागवत कथा आयोजन कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं है।यह मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति का साधन है।लेकिन आजकल के कथाकार व्यास पीठ की मर्यादाएं लांघ रहे हैं।श्रीमद् भागवत जैसे पुण्य ग्रंथ को मनोरंजन का साधन बनाकर नाच गाना कर रहे हैं।इसके लिए श्रद्धालु दोषी नहीं है। व्यास पीठ के महत्व नहीं समझना और अल्पज्ञ कथाकार ही इसके दोषी हैं। भागवत श्रद्धा का विषय है। इसे शुद्ध हृदय से सांसारिक बंधनों को छोड़कर सुनना चाहिए उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद् भागवत कथा को सुनने और सुनने वाले दोनों को इसके प्रति अटूट आस्था और प्रेम होना चाहिए। तभी आयोजन की सार्थकता है। कथा वाचक ने कहा कि हमें प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने की आवश्यकता है। सप्ताह में एक दिन सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ हो कथा के चतुर्थ दिन समुद्र मंथन और वामन अवतार के दौरान वामन भगवान के दिव्य झांकी निकाली गई।
