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अतिथि वो जिसका आने और जाने का समय निश्चित नहीं होता – मनोज कृष्ण शास्त्री

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रायपुर। अतिथि वो होते है जिनके आने का न तो निश्चित समय होता है और ना ही जाने का समय निश्चित होता है। जो बताकर आते और जाते है व अतिथि कैसे कहलाएंगे। अतिथि की सेवा और सत्कार करना ही नारायण की सेवा करना है। गुढिय़ारी हनुमान मंदिर के वार्षिकोत्सव में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान महाभारत का दृष्टांत का वर्णन करते हुए ये बातें वृंदावन से आए कथावाचक मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने श्रद्धालुजनों को बताई।
उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में कलयुग शुरु हो चुका है और कलयुग अपना प्रभाव भी दिखा रहा है जिसका असर लोगों पर परिलक्षित हो रहा है। ऐसे समय में भगवान का स्मरण और उनका सन-कीर्तन व श्रवण ही इससे छूटकारे का उपाय है। जो कहते है कि भगवान व भजन बुढ़ापे में करेंगे यह संभव नहीं है क्योंकि इसके लिए बचपन से ही अभ्यास करना होता है। एकाएक भगवान की भक्ति और भजन नहीं हो सकते। संतों की सेवा करने से उनसे जो प्रसाद प्राप्त होता है उससे मनुष्य का जीवन बदल जाता है। कथा श्रवण से शुष्क अवस्था में रहने वाले भी जागृत हो जाते है फिर चाहे वह पशु-पक्षी अथवा अन्य कोई जीव क्यों न हो।
शास्त्री जी ने ज्ञान प्राप्ति की व्याख्या करते हुए कहा कि मनुष्य को ज्ञान भी तभी प्राप्त हो सकता है जब वह ज्ञान उसे परमज्ञानी से प्राप्त हो सकता है, जिसमें कि उसके प्रति उसकी पूरी श्रद्धा, निष्ठा और कामनारहित भक्ति होती है, तभी उसे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। आज-कल बड़ों को प्रमाण करने की परंपराएं बदल गई है, केवल नाम मात्र और दिखावे के लिए ही इन परंपराओं का पालन किया जा रहा है। वास्तविकता यह हैं कि जब निष्काम मन से प्रमाण और बड़ों की सेवा की जाती है तो उनसे जो आर्शीवाद और प्रसाद प्राप्त होता है उससे जीवन सुखमय हो जाता है। शास्त्री जी ने महाभारत में कुंति के दृष्टांत का वर्णन करते हुए बताया कि कुंति ने भगवान से कुछ नहीं मांगा, उसने केवल भगवान से कष्ट ही मांगे, जबकि उसका जीवन कष्टों से भरा हुआ था। भगवान के पूछने पर कुंति ने कहा कि कष्ट में भगवान आप हमेशा मेरे साथ बने रहोगे, जबकि सुख आने पर मैं आपको भूल भी सकती हूं और वह मैं नहीं चाहती। दुख में आप हमेशा मेरे साथ ही रहेंगे, जब आप साथ रहेंगे तो मुझे दुख और सुख दोनों मेरे साथ होंगे।

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