पेसा कानून के स्थापना दिवस पर बुरुंगपाल के संविधान गुड़ी में किया गया ध्वजारोहण

जगदलपुर। संभाग मुख्यालय से 35 किमी दूर तोकापाल ब्लाक के अंतर्गत ग्राम पंचायत बुरूंगपाल अपने आप में अनूठा पंचायत है, यहां संविधान गुड़ी ( मंदिर) बनाई गई है । इस शिलालेख में संविधान की पांचवीं अनुसूची व ग्राम सभा की पेसा एक्ट 1996 के विशेष शक्तियों का उल्लेख किया गया है। 24 दिसंबर को पेसा कानून दिवस के अवसर पर संविधान गुड़ी में ध्वजारोहण किया गया। आदिवासी युवाओं को संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक व जानकार बनाने गांव के बुजुर्ग जनपद सदस्य सोमारू कर्मा के नेतृत्व में बीते बरसों से एक मुहिम चलाई जा रही है। इसके तहत आस-पास के गांव में सभा का आयोजन कर पेसा एक्ट, पांचवी अनुसूची, वनाधिकार अधिनियम आदि जनजातीय संरक्षण संबंधी प्रावधानों की जानकारी दी जाती है। स्थानीय लोगों ने बताया कि सन 1996 में बस्तर जिले के बुरुंगपाल से ही पेसा कानून अधिनियम की ड्राफ्टिंग डॉ. बीडी. शर्मा ने की थी और वहीं बैठकर उन्होंने ग्राम सभा और पेसा कानून को मजबूत करने के लिए लड़ाई लड़ी था। इस लड़ाई के माध्यम से डिलमिली में प्रस्तावित डायकेन नामक फैक्ट्री को भी निरस्त करवाया था।
कार्यक्रम में सुकरू बघेल ने बताया कि 24 दिसंबर 1996 को पेसा कानून देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया गया। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष हेमलाल मरकाम, मोहन कश्यप ने पेसा कानून के प्रावधानों पर प्रकाश डाला। इस दौरान सोमारू कर्मा, सोमारू कौशिक, घनश्याम झुरी, नरेंद्र देव नरेटी, रूकमणी कर्मा, सुलो पोयाम, गंगा नाग, पोजा मरकाम, किशोर मड़ावी, हिड़मा मड़ावी, सुश्री कमलेश्वरी झुरी, प्रदीप साहू, सुरेंद्र नेताम, मासा कुंजाम, हिदमो वट्टी, नरेंद्र कर्मा, याकूब तिर्की, सचिन कश्यप, मोहन कश्यप, महेद्र मड़ावी, हिरमा सोढ़ी, मानिक गावड़े, गोपाल पोयाम, पूरन सिंह कश्यप, रूकधर कश्यप, लछ्मी नाथ, शोभा मड़ावी आदि प्रमुख रुप से उपस्थित थे।
गौरतलब है कि बस्तर के चर्चित पूर्व कलेक्टर व समाजशास्त्री स्व. डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा का इस गांव से पुराना ताल्लुक रहा है। इस दौरान डॉ. शर्मा ने इसी गांव के झोपड़ी में रहते हुए ड्राफ्ट लिखा था । इसके बाद इसे पारित किया गया, डॉ. शर्मा ने आदिवासियों को जल-जंगल व जमीन के संवैधानिक अधिकारों के प्रति लगातार जागरूक किया था। उनके प्रेरित करने पर ही छह अक्टूबर 1992 को संविधान गुड़ी की आधारशिला रखी गई थी।
बस्तर राज मोर्चा के प्रमुख मनीष कुंजाम ने कहा कि वर्ष 1992 में डायकेन नामक कंपनी को कारखाना लगाने के लिए 6 गांव की जमीन देने के लिए तत्कालीन सरकार ने अनुमति दी थी। उस कंपनी के खिलाफ जो लड़ाई हुई, उस लड़ाई का सबसे प्रमुख स्थान बुरुंगपाल है। जिसके सूत्रधार बीडी शर्मा थे, वहीं पेसा कानून में ग्राम सभा से जुड़े नियम और नारे इसी स्थान से गढ़े गए थे। इसीलिए यह एक तीर्थ स्थल भी है। नारे में ‘Óमावा नाटे मावा राजÓÓ, ‘Óआम्चो गांव ने आम्चो राजÓÓ ( हमारे गांव में हमारा राज) जो पूरे देश में गूंजता है। मनीष कुंजाम ने कहा कि बुरुंगपाल के मंच से छठवीं अनुसूची को लेकर लडऩे का ऐलान हुआ। बस्तर के जल जंगल जमीन को ग्राम सभा के कानून से बचा नहीं पा रहे हैं, क्योंकि राज्य सरकार ग्राम सभा के अधिकार को नहीं मान रही है। जिसको कुचलने का प्रयास कर रही है, या फर्जी ग्राम सभा करके गांव को गुमराह कर रही है। इसीलिए यह चाहते हैं कि जिला स्तर पर सभी वर्ग के लोग होंगे जिनके पास अधिकार होगा, वे सभी मिलकर पूरा सरकार चलाएंगे। सब कुछ जिले में तय होगा, जो राज्य सरकार तय करती है। इसीलिए बस्तरवासियों की मांग है कि छठवीं अनुसूची के बगैर बस्तर को बचाना संभव नहीं है। इसीलिए पुन: विवश होकर छठवीं अनुसूची की मांग की गई है। उम्मीद है कि एक बड़ी लड़ाई बस्तर में लड़ी जाएगी, लोगों को गोलबंद करने का प्रयास किया जायेगा।







