कांकेर में धर्मांतरण बवाल के बाद बोर्ड लगाकर पादरियों (पास्टरों) के प्रवेश पर प्रतिबंध की मुहीम हुई तेज

कांकेर । बस्तर संभाग के कांकेर जिले में धर्मांतरण को लेकर हुए बवाल के बाद जिले के गांवों की सीमाओं पर बकायदा बोर्ड लगाकर पादरियों (पास्टरों) के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। भानुप्रतापपुर विकासखंड के कुड़ाल गांव से शुरू हुई यह मुहिम अब 14 से अधिक गांवों तक पहुंच चुकी है। जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़े तेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार के दौरान हुई हिंसा और तोडफ़ोड़ के बाद यह मुहीम और तेज हुआ है। ग्रामीणों और सरपंचों का कहना है कि यह फैसला किसी धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि आदिवासियों को प्रलोभन देकर कराए जा रहे मतांतरण को रोकने के लिए लिया गया है। उनका तर्क है कि बाहरी हस्तक्षेप से उनके पुराने रीति-रिवाज और उनका सामाजिक ढांचा खतरे में है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इन ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने माना कि जबरन या प्रलोभन देकर मतांतरण रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम हैं।
गौरतलब है कि जिले के कुड़ाल गांव में अगस्त 2025 में ग्राम सभा बुलाई गई थी। इसमें प्रस्ताव पारित कर पास्टर और पादरियों के प्रवेश पर रोक का बोर्ड लगाया गया। इसके बाद ये अभियान तेजी से ग्राम परवी, जनकपुर, भीरागांव, घोडागांव, जुनवानी, हवेचुर, घोटा, घोटिया, सुलंगी, टेकाठोडा, बांसला, जामगांव, चारभाठा और मुसुरपुट्टा आदि गांवों तक फैल गया। जबकि दर्जनों अन्य गांवों मे ऐसे ही प्रस्ताव लाने की तैयारी है। ग्राम सभाओं ने पेसा अधिनियम 1996 के तहत यह निर्णय लिया और बोर्ड लगाकर स्पष्ट किया कि गांवों में मसीही धार्मिक आयोजन वर्जित रहेंगे। बोर्ड पर लिखा है कि गांव में आदिवासियों को प्रलोभन देकर मतांतरण करना हमारी संस्कृति पहचान को नुकसान पहुंचाने के साथ आदिम संस्कृति को खतरा है। अत: ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर पास्टर, पादरी एवं मतांतरित व्यक्तियों के धार्मिक आयोजन के उद्देश्य से प्रवेश पर रोक लगाते हैं।







