अबूझमाड़ में शीर्ष नक्सलियों के मारे जाने के बाद बंद पड़े साप्ताहिक बाजार अब खुलने लगे

नारायणपुर। जिले के अबूझमाड़ में शीर्ष नक्सलियों के मारे जाने के बाद नक्सलवद को छोड़कर मुख्यधारा में बड़ी संख्या में नक्सलियों के लौटने से एवं सुरक्षा कैंपों की स्थापना और सड़क-बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के विस्तार ने अबूझमाड़ के ग्रामीणों का भरोसा लौटने लगा है। अबूझमाड़ में नक्सलियों के प्रभाव से यहां लगने वाले बंद पड़े साप्ताहिक बाजार अब खुलने लगे हैं। इसी कड़ी में जाटलूर गांव में बंद पड़े साप्ताहिक बाजार की रौनक दिखी, जिसमें सब्जि़यों की टोकरी, वनोपज के ढेर, बच्चों की हंसी और सौदेबाज़ी की आवाज़ों से इलाके में रौनक दिखने लगी है।
जाटलूर में वर्षों बाद साप्ताहिक बाजार लगने से आस-पास के डोडीमरका, पदमेटा, लंका, बोटेर, करांगुल, मुरुमवाडा, धोबे, कुमनार और गट्टाकाल जैसे गांवों से लोग पहुंचे। पहले यही लोग ओरछा बाजार तक लगभग 40 किमी की दूरी घने जंगलों के बीच दो दिन का जोखिम भरा सफर तय करते थे। अब वही जरूरतें गांव के पास पूरी हो रही हैं। हाट में घर में उगाई सब्जियां बेच रहीं डोडीमरका की मासे कहती हैं, पहले जंगल में डर रहता था। कई किमी पैदल चलकर सब्जी बेचने बाजार-बाजार जाते थे। अब बाजार अपने गांव में है, दाम भी ठीक मिला है। बर्तन खरीदने आए मुरुमवाडा के सोमा बताते हैं कि रास्ता बना, कैंप खुले, अब आने-जाने में डर नहीं है।
प्रशासन के अनुसार नक्सलवाद सिमटा है, आत्मसमर्पण और पुनर्वास के बाद कई पूर्व नक्सली मुख्यधारा में लौटे हैं। इसके साथ ही माड़ बचाओ अभियान के तहत अंदरूनी इलाकों में नए सुरक्षा कैंप, सड़क-पुलिया निर्माण और जनकल्याणकारी योजनाओं की पहुंच बढ़ी है । जाटलूर-लंका एक्सिस पर सुरक्षा की मौजूदगी ने व्यापारियों का भरोसा भी जीता है। जिला मुख्यालय और आस-पास के क्षेत्रों से कपड़ा, राशन, बर्तन और प्लास्टिक सामान के विक्रेता साप्ताहिक बाजार में पहुंच रहे हैं।
नारायणपुर एसपी रोबिनसन गुडिय़ा का कहना है कि यह बाजार सिर्फ आर्थिक गतिविधि नहीं, शांति की वापसी का संकेत है । हमारा लक्ष्य है कि लोग बिना भय के रोज़मर्रा की जि़ंदगी जी सकें। सुरक्षा, सड़क और बाजार तीनों मिलकर विकास की स्थायी नींव रखते हैं। उन्होंने साप्ताहिक बाजार की सुरक्षा और सुविधाओं की नियमित समीक्षा के निर्देश भी दिए हैं।







