खैरागढ़ में औद्योगिक विकास और जंगलों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल

खैरागढ़ के छुईंखदान क्षेत्र में प्रस्तावित श्री सीमेंट फैक्ट्री को लेकर उठा विरोध अब केवल एक औद्योगिक परियोजना का मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन और विकास के मौजूदा मॉडल पर खड़े बड़े सवालों का प्रतीक बन गया है। स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण संगठनों का आरोप है कि फैक्ट्री के लिए होने वाली खुदाई से वन भूमि, पहाड़ी संरचना, जल स्रोत और कृषि भूमि को भारी नुकसान पहुंचेगा, जबकि प्रशासन इसे नियमों के अनुरूप बता रहा है। यह विरोध खैरागढ़ तक सीमित नहीं है, बल्कि हसदेव अरण्य, तम्नार, बस्तर और अबूझमाड़ जैसे इलाकों में भी इसी तरह के प्रोजेक्ट्स के खिलाफ आवाज़ उठ रही है। इसी बीच Global Forest Watch जैसे सैटेलाइट आधारित आंकड़े बताते हैं कि राज्य में प्राकृतिक जंगलों का लगातार नुकसान हो रहा है, जबकि सरकारी रिपोर्टों में प्लांटेशन और सड़क किनारे लगाए गए पेड़ों को जोड़कर फॉरेस्ट कवर बढ़ने की तस्वीर दिखाई जाती है। पर्यावरण विशेषज्ञ मानते हैं कि प्लांटेशन प्राकृतिक जंगलों का विकल्प नहीं हो सकते, क्योंकि पुराने जंगल पूरे पारिस्थितिक तंत्र, जल स्रोतों, वन्यजीवों और स्थानीय समुदायों की आजीविका से जुड़े होते हैं। खैरागढ़ में भी यही सवाल उठ रहे हैं कि क्या ग्राम सभाओं की सहमति और पर्यावरणीय आकलन वास्तव में ईमानदारी से हुए हैं और क्या भविष्य में जल संकट व भूमि क्षरण का खतरा बढ़ेगा। कुल मिलाकर यह बहस सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि विकास और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के संतुलन की है, जहां छत्तीसगढ़ आज जंगलों के साथ न्याय करने या उन्हें विकास के नाम पर खो देने के चौराहे पर खड़ा है।







