शहीद वीर नारायण सिंह का संघर्ष और बलिदान

शहीद वीर नारायण सिंह, जिनका जन्म 1795 में छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के सोनाखान गांव में हुआ था, प्रदेश के प्रथम शहीद और महान क्रांतिकारी माने जाते हैं। 1857 की क्रांति के समय उन्होंने छत्तीसगढ़ पर अंग्रेजों के बढ़ते कब्जे के खिलाफ साहसपूर्वक विद्रोह का नेतृत्व किया। लगातार पड़ रहे अकाल के दौरान उन्होंने सोनाखान के व्यापारी माखन के बड़े अनाज भंडार से अनाज निकालकर भूखे ग्रामीणों में बाँट दिया, जिसके कारण अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय और स्थानीय किसानों की मदद से वे कैद से मुक्त हो गए और सोनाखान में 900 ग्रामीणों की अपनी सेना बनाकर ब्रिटिश हुकूमत से डटकर मुकाबला किया। बाद में रिश्तेदार देवरी के जमींदार के विश्वासघात के कारण वे अंग्रेजों के कब्जे में आ गए। अंततः 10 दिसंबर 1857 को रायपुर के वर्तमान जय स्तंभ चौक में उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई। उनकी शहादत ने छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला को और प्रज्वलित कर दिया तथा उन्हें सदैव के लिए जन-नायक और शौर्य के प्रतीक के रूप में अमर कर दिया।







