महात्मा गांधी नरेगा ने बदली बुलबुलराम की किस्मत, छोटे किसान से सफल ऑर्गेनिक बाड़ी उत्पादक की कहानी

कवर्धा। कबीरधाम जिले के पंडरिया विकासखंड अंतर्गत ग्राम पाढ़ी में रहने वाले श्री बुलबुलराम पिता सुजानिक एक साधारण किसान है।जिनका जीवन-यापन मुख्य रूप से कृषि और गौवंशी पशु पर निर्भर है। बुलबुलराम की इच्छा थी कि वह और अधिक पशु पालें, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पशुओं को रखने के लिए एक सुरक्षित और व्यवस्थित जगह का अभाव था। खुले में पशुधन को रखना न केवल उनकी सुरक्षा के लिए जोखिम भरा था, बल्कि पशु सेवा और दुग्ध उत्पादन में भी बाधा उत्पन्न करता था। श्री बुलबुलराम की इस समस्या का समाधान तब हुआ जब उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत पशु शेड निर्माण की स्वीकृति 68000 रुपए से मिली। इस योजना ने उन्हें न केवल एक पक्का शेड बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की गई, बल्कि उनके और उनके परिवार के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के साथ आजीविका भी सुनिश्चित किया।
एक शेड, अनेकों लाभ: आय के बने तीन नए स्रोत।
पशु शेड का निर्माण बुलबुलराम के जीवन में एक क्रांतिकारी मोड़ लेकर आया। अब उन्हें अपने पशुओं को बाहर छोड़ने की आवश्यकता नहीं रही। वह अपने पशुओं का घर पर ही बेहतर सेवा करने लगे, जिससे उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता में बहुत सुधार आया।सुरक्षित और व्यवस्थित पशुशेड मिलने के कारण बुलबुलराम अब ज्यादा पशु रखने में सक्षम हुए। उनके गौवंशी पशुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। बछड़े और बछिया की संख्या बढ़ने से उनका विक्रय भी संभव हो पाया, जिससे उन्हें आय का एक और स्थायी स्रोत मिला।

दुग्ध उत्पादन में वृद्धि!
बेहतर देखभाल और स्वच्छ वातावरण के कारण दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि हुई, जिससे उनकी पारिवारिक आय में महत्वपूर्ण इज़ाफ़ा हुआ। प्रतिदिन तीन से चार लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है और ग्रामीण घर में ही आकर दूध प्रति लीटर 35 से 40 रुपए में खरीद रहे हैं है। इस तरह प्रतिदिन लगभग 80 से 100 रुपए का आमदनी घर में आ रहा है। घर में दूध उपलब्ध होने से घर के सदस्यों को पौष्टिक आहार भी मिल रहा है जो उनके सेहत को पहले से और बेहतर बना रहा है। आत्मनिर्भरता और दान सफलता के इस क्रम में बुलबुलराम ने सामुदायिक भावना का परिचय देते हुए एक गौवंशी पशु का दान भी किया है।
जैविक बाड़ी का मिल रहा लाभ
पशुशेड के कारण गोबर एवं गौमूत्र को व्यवस्थित रूप से इकट्ठा करना संभव हो रहा है। इसका उपयोग उत्कृष्ट जैविक खाद और गौमूत्र का उपयोग अपने बाड़ी (रसोई उद्यान) में सब्जी उत्पादन के लिए किया जाने लगे।बिना किसी रासायनिक खाद उपयोग के, उन्हें स्वच्छ और शुद्ध ऑर्गेनिक सब्जी का उत्पादन हो रहा है।ऑर्गेनिक सब्जियों के उत्पादन और विक्रय से अच्छी आमदनी मिलने लगी है जो आय का तीसरा प्रमुख स्रोत बन गया।आस पास के ग्रामीणों में इनके सब्जियों की मांग है साथ ही परिवार के लिए भी जैविक एवं पौष्टिक सब्जियां उपयोग हो रहा है। घर में सब्जी उत्पादन होने से बाजार से सब्जी खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है जिसके कारण इनके पैसों की बचत हो रही है जो सीधे तौर पर आर्थिक लाभ ही है।
समाज के अंतिम छोर तक पहुँचता मनरेगा योजना का लाभ
बुलबुलराम और उनके सात सदस्यी परिवार की कहानी इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे महात्मा गांधी नरेगा जैसी योजनाएँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत संपत्ति सृजन, आय वृद्धि और पर्यावरण हितैषी जीवन-शैली का माध्यम बन सकती हैं।एक पशु शेड की स्वीकृति ने बुलबुलराम को आत्मनिर्भर, सफल पशुपालक और जैविक सब्जी उत्पादक बना दिया है। वह आज न सिर्फ अपनी आय बढ़ा रहे हैं, बल्कि गौवंशी वृद्धि, दूध विक्रय, पशु विक्रय, और शुद्ध जैविक बाड़ी उत्पाद विक्रय जैसे चार स्थायी आय के स्रोतों का निर्माण कर चुके हैं।यह सफलता दिखाती है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ना केवल मजदूरी तक सीमित है बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी संपत्ति निर्माण,पशुधन संरक्षण, शून्य अपशिष्ट प्रबंधन और आजीविका सशक्तिकरण की कुंजी भी है।







