Chhattisgarh

“सूरजपुर का भूला-बिसरा राष्ट्रपति भवन और पंडो जनजाति की उम्मीदें”

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सूरजपुर के पंडोनगर में स्थित छोटा सा “राष्ट्रपति भवन” अपने भीतर एक अनोखी और कम-जानी कहानी समेटे हुए है। 20 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अंबिकापुर आगमन के अवसर पर पंडो जनजाति के लोग एक बार फिर अपनी उम्मीदें और पीड़ा सामने रख रहे हैं। वर्ष 1952 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब तत्कालीन सरगुजा राजा रामानुज शरण सिंह देव के साथ हेलीकॉप्टर से इस क्षेत्र के ऊपर से गुजर रहे थे, तब उनकी नजर जंगलों में रहने वाली बेहद साधन-हीन पंडो जनजाति पर पड़ी। वे तुरंत गांव में उतरकर इनके बीच एक दिन बिताने की इच्छा रखते थे। ग्रामीणों ने उनके ठहरने के लिए घास-फूस की एक छोटी छोपड़ी तैयार की, जिसे बाद में “राष्ट्रपति भवन” नाम दिया गया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पंडो समुदाय को अपना दत्तक पुत्र मानते हुए उनके उत्थान के लिए घर, खेती के लिए बैल और कई योजनाएं दीं। उनके जाने के बाद उस अस्थायी छोपड़ी को पक्का भवन बनाकर संरक्षित किया गया। हालांकि सरकारी योजनाओं और इस ऐतिहासिक भवन की मौजूदगी के बावजूद पंडो जनजाति के लोगों को आज तक उनकी जमीन के पट्टे नहीं मिल पाए हैं। वे अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें भूमि अधिकार और उनके शिक्षित युवाओं को रोजगार का अवसर मिले।

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