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सहकारी समितियों के कर्मचारियों पर एस्मा लगाना सरकार का अधिनायकवादी चरित्र – बैज

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रायपुर। धान खरीदी तिहार को लेकर सरकार दावों पर सवाल उठाते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा है कि पहले ही दिन किसान टोकन, बारदानों और तौलकाटा का इंतजार करते रहे, आखिर में निराश होकर लौटना पड़ा। ऐप से भी टोकन जारी नहीं हो रहा है, न ही कहीं पर धान उपार्जन केंद्रों में ऑफलाइन व्यवस्था है, जमीनी हकीकत सरकार के दावों के विपरीत है। सोसायटी कर्मचारी हड़ताल पर हैं, उनके मांगो को लेकर इस सरकार ने पिछले खरीफ सीजन में भी लिखित आश्वासन दिया था, लेकिन पूरा नहीं किए। अब उनसे चर्चा के बजाय रायपुर जिले के सहकारी सोसाइटियों के कर्मचारियों पर एस्मा लगाकर नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है, यह सरकार अपनी वादाखिलाफी को छुपाने बर्बरता पर उतर आई है। उपार्जन केंद्रों से धान का परिवहन और मिलिंग को लेकर अब तक अनिर्णय की स्थिति है। जिम्मेदारों का कहीं अता-पता नहीं है।
बैज ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार धान खरीदी के नाम पर केवल विज्ञापन और प्रयोग इवेंट कर रही है। संग्रहण केन्द्रो में अव्यवस्था और बदहाली है। प्रदेश के 2739 उपार्जन केंद्रों में कहीं पर भी किसानों को आज टोकन उपलब्ध नहीं हुआ। समर्थन मूल्य पर धान बेचने की आस लगाए किसानों को सोसाइटियों से हताश होकर लौटना पड़ा। सरकार का वैकल्पिक व्यवस्था का दावा भी झूठा निकला, धान उपार्जन केंद्रों में खरीदी के लिए कोई भी जिम्मेदार कर्मचारी, अधिकारी या भाजपाई नेता, मंत्री मौजूद नहीं थे।
छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार धान खरीदी की तैयारी में भारी खामी और अव्यवस्था वर्तमान में दिख रही है। किसानों के एकीकृत पोर्टल से एग्रीस्टेक पोर्टल में रकबा एंट्री में भारी गड़बड़ी। पहले ही किसानों के लिए सर दर्द बना हुआ है, 7 लाख से अधिक किसान पंजीयन से वंचित हैं, पिछले साल की तुलना में इस बार 5 लाख हेक्टेयर रकबा घटा दिया गया, धान खरीदी प्रक्रिया में व्यापक बदलाव से कंप्यूटर ऑपरेटर भी परेशान हैं। सरकार अपनी पोर्टल और व्यवस्था सुधारने के बजाय एग्री स्टेट पोर्टल में पंजीयन की अनिवार्यता पर पड़ी हुई है। दान और लीज की भूमि पर खेती करने वाले किसानों का भी पंजीयन नहीं हो रहा है। सरकार के रवैया से लग रहा है भाजपा सरकार की नियत नहीं है कि छत्तीसगढ़ के किसानों से निर्बाध धान खरीदी संपन्न हो, किसान विरोधी भाजपा सरकार की कथनी और करनी में बड़ा फर्क है, छत्तीसगढ़ का किसान सरकार की बदनियती को समझ रहा है।

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