ChhattisgarhPolitics

क्या बीजेपी में समर्पित कार्यकर्ताओ की कोई आवश्यकता नहीं, पुराने कार्यकर्ताओ में बढ़ती नाराजगी

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From the pen of editor Rahul Choubey
संपादक राहुल चौबे की कलम से 

रायपुर। बीजेपी में इन दिनों ‘पराक्रम’ यानी ताकत या बहादुरी दिखाने के बजाय ‘परिक्रमा’ यानी चापलूसी और चालाकी वाली राजनीति को पसंद किया जा रहा हैं, जी हाँ ये बात इन दिनों पुराने कार्यकर्ताओ के मुख से सुनाई दे रही है। सूत्रों की माने तो कई नेता अपने व्यक्तिगत हितों और लाभ के लिए दूसरों की हाँ में हाँ मिलाते नजर आ रहे हैं और सत्ता तथा प्रभाव को बनाए रखने के लिए ऐसी राजनीतिक चालें चल रहा हैं जो सीधे टकराव या बहादुरी से नहीं आती हैं।
बड़े नेताओं का झुकाव : इस पर वरिष्ठ कार्यकर्त्ता यह तर्क दे रहे है कि बड़े नेता, जो पहले से ही सत्ता और प्रभाव में हैं, उनको अधिक सावधानी बरतने और किसी भी प्रकार के टकराव से बचने की आवश्यकता होती है, जिससे वे ‘परिक्रमा’ की राजनीति को अधिक पसंद करते हैं। वे अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए चापलूसी और चालाकी को अपनाने वालो को पसंद कर रहे है वही जो कार्यकर्ता संघर्ष कर रहे है वे आज भी संघर्षरत है। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि आखिरकार कब तक वरिष्ठ कार्यकर्ताओ को पार्टी कार्यकर्त्ता बताकर लॉलीपॉप देती रहेगी। क्या उन्हें किसी निगम, मंडल या आयोग में बैठने का अधिकार नहीं है या फिर केवल वे कार्यकर्त्ता ही रह जाएंगे। खैर ये पार्टी के लिए चिंतन का विषय है। सूत्रों की माने तो एक मंत्री जो पूर्व में बड़े अधिकारी रहे है उनकी भी शक्तिया कम हो गई है। इन दिनों उनको भी अपने काम के लिए अधिकारियों को बार बार कॉल करना पड़ रहा है इतना ही नहीं उनके भी काम लेट लतीफ़ हो रहे है।
सूत्रों की माने तो कार्यकर्ताओ ने दबे जुबान यह कहना शुरू कर दिया है कि कुछ कांग्रेसियों के बीजेपी में प्रवेश करने के बाद अब उन्होंने बीजेपी का कांग्रेसीकरण कर दिया है।

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