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आधी रात में निभाई जाती है निशा जात्रा की रस्म, राज परिवार के लोग रहते हैं मौजूद

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जगदलपुर। बस्तर दशहरा की एक खास परंपरा जिसे निशा जात्रा कहते हैं। इस पर्व की सभी रस्में बेहद ख़ास होती हैं और इसे पूरे विधि विधान के साथ पूरा किया जाता है। रियासत कालीन परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है। आधी रात को बस्तर राज परिवार के सदस्य निशा जात्रा बाड़ा पहुंचे और तांत्रिक पूजा कर बस्तर की खुशहाली की कामना की। नवरात्र के अष्टमी खत्म होने के बाद आधी रात को निशा जात्रा की पूजा की जाती है। निशा जात्रा, बस्तर दशहरा की एक पारंपरिक और तांत्रिक रस्म है, जिसे अष्टमी की रात को किया जाता है और इससे रक्षा के लिए बलि भी दी जाती है। आधी रात को निशा जात्रा मंदिर में तांत्रिक मन्त्रों से मां खमेश्वरी की पूजा कर 12 बकरों की बलि देने का विधान है।
इसके लिए 12 गांवों के राउत माता के लिए भोग तैयार करते हैं। यह पूजा विधान बस्तर की खुशहाली के लिए किया जा रहा है। बस्तर दशहरा के रस्मों में निशा जात्रा का विशेष महत्व है। इस के तहत मध्य रात्रि में राज परिवार के सदस्य महुआ तेल से प्रज्वलित विशेष मशाल की रोशनी में अनुपमा चौक स्थित निशा जात्रा मंदिर पहुंचते हैं और एक घंटे तक तांत्रिक पूजा करते हैं। इस दौरान बारह बकरों की बलि दी जाती है और इनके सिरों को क्रमबद्ध रख दीप जलाया जाता है। साथ ही मिट्टी के बारह पात्रों में रक्त भर कर तांत्रिक पूजा अर्चना की जाती है।
प्रधान पुजरी का मानना है कि, यह परंपरा फैज साही से चली आ रही है और राजा अपनी प्रजा की खुशहाली के लिए तांत्रिक पूजा कर देवी-देवताओ से आशीर्वाद मांगते हैं। राजपरिवार के सदस्य कमल चंद्र भंजदेव बताते हैं कि, दुर्गा अष्टमी की रात्रि 12 बजे के बाद निशा जात्रा होती है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। साल में एक बार तंत्र-मंत्र की पूजा स्वयं राजा करता है। इस खास रस्म को पूरा करने राज परिवार के सभी लोग उपस्थित थे।

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