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वैश्विक दृष्टिकोण से आईपीआर महत्वपूर्ण : प्रो व्यास

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रायपुर। महंत लक्ष्मी नारायण दास महाविद्यालय एवं विवेकानंद महाविद्यालय रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित छह दिवसीय कार्यशाला का समापन एक सूत्र वाक्य इनोवेशन और आईपीआर में गहरा संबंध के साथ समाप्त हो गया। इस अवसर पर सीजी कॉस्ट के वैज्ञानिक अमित दुबे , पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रभारी कुल सचिव प्रो अंबर व्यास, महंत लक्ष्मी नारायण दास महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर देवाशीष मुखर्जी व विवेकानंद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ मनोज मिश्रा की विशेष उपस्थिति रही ।

समापन सत्र के पूर्व अंतिम व्याख्यान में सीजी कॉस्ट के वैज्ञानिक अमित दुबे ने आईपीआर को आम लोगों के जीवन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू बताया। उन्होंने कहा कि जहां पर कोई क्रियात्मकता नहीं है वहां पर आईपीआर नहीं है जहां क्रियात्मकता है वहां पर आईपीआर की मौजूदगी है। छोटी समस्या का तकनीकी समाधान को इनोवेशन के रूप में देखा जाता है इसी परिपेक्ष में इनोवेशन क्या होते हैं ? उनके महत्व क्या है ? और किस लिए किए जाते हैं ? यह भी सभी स्तर पर समझने की आवश्यकता है। वैज्ञानिक अमित दुबे ने अपनी बातों का व्याख्या करते हुए यह बताया कि नए विचार नई सोच का रजिस्ट्रेशन ही आईपीआर से गहरा संबंध जोड़ता है। उन्होंने कोलकाता के रसगुल्ला से लेकर उड़ीसा के रसगुल्ला में फर्क बताकर पेटेंट कराने की बातों को भी स्पष्ट किया कि क्यों दोनों को पेटेंट किया गया है। उन्होंने बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन की उदाहरण से यह बताने की कोशिश की की किस तरह से इनोवेशन और आईपीआर में संबंध है। वैज्ञानिक अमित दुबे ने अपने सीमित और संक्षिप्त व्याख्यान में आईपीआर से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी जो तकनीकी तौर पर और वैधानिकता को मजबूत स्थिति पर प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त है।

पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रभारी कुल सचिव प्रो अंबर व्यास ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में आईपीआर काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि ज्ञान को सहेज कर किस तरह से पेटेंट कराया जा सकता है, उनका मानना है कि देश में ज्ञान की कमी नहीं है किंतु इस ज्ञान का उपयोग उचित स्तर पर होना चाहिए।उन्होंने यह भी कहा कि सभी लोगों को नकारात्मकता को अलग रखकर आईपीआर को समझने की आवश्यकता है कई स्तर पर आईपीआर कराए जा सकते है। इस बात को रेखांकित करते हुए डॉक्टर अंबर व्यास ने नए शोधार्थियों को मैसेज दिया और कहा कि उनके मौलिक कार्यों को गुणात्मक स्तर पर जाने के बाद पेटेंट करना चाहिए। जबकि वैज्ञानिक अमित दुबे ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने धान की फसल के 13 प्रजातियां का पेटेंट कराया है। आयोजन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर देवाशीष मुखर्जी एवं विवेकानंद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर मनोज मिश्रा ने छह दिवसी कार्यशाला के उद्देश्यों को स्पष्ट किया और कहा कि यह दोनों महाविद्यालय एक समझौते के तहत अपने रिसर्च स्कॉलर और महाविद्यालय के स्टाफ के लिए बौद्धिकता वाले कार्यक्रम निरंतर आयोजित कर रहा है और आने वाले दिनों में यह श्रृंखला को और बढ़ाया जाएगा। आयोजन में डॉक्टर मेघा सिंह ने छह दिवसी कार्यशाला का संक्षिप्त रिपोर्ट पेश की जबकि आभार प्रदर्शन कॉमर्स के अध्यक्ष डॉ शांतनु पाल ने किया वहीं कार्यक्रम में मंच का संचालन डॉ श्रुति तिवारी के द्वारा किया गया ।

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