जब आत्मबोध हो जाए कि अमृत्व तो हमारे भीतर है कहीं और जाने की जरूरत नहीं – दीदी माँ मंदाकिनी

0- सौंदर्य व श्रृंगार का आधार भगवान हो तो वह सौंदर्य परमकल्याणकारी होगा
रायपुर। आपका स्वरूप भी अमृत्व प्राप्त है। कथा अमृत के द्वारा जो ज्ञान मिलेगा, जो आत्म बोध होगा कि वास्तव में मेरा स्वरुप ही अमृत है इसलिए मुझे और कोई बाहर के अमृत की आवश्यकता नहीं है। यह अनुभूति जब हो जाए तो बहिरंग अमृतपान की क्या आवश्यकता? तब और कहीं जाने की जरूरत नहीं है। अमृत स्नान के लिए अधिकाधिक लोग प्रयागराज कुंभ गए, लेकिन जो नहीं जा पाये वे निराश न हों, श्रीराम कथा में गोता लगाएं वही पुण्य लाभ मिलेगा। जब सौंदर्य व श्रृंगार का आधार भगवान हो तो वह सौंदर्य परमकल्याणकारी होगा। श्रीरामचरित मानस में दो वाटिका का उल्लेख है एक अशोक वाटिका और दूसरा पुष्प वाटिका, दोनों के मूल में भक्ति है राम की।
सिंधु भवन शंकरनगर में श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान श्रद्धालुओं को मानस मर्मज्ञ दीदी माँ मंदाकिनी ने बताया कि रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सनातन धर्म का जो दर्शन कराया है वह अद्भूत है। हम पुष्प वाटिका के प्रसंग को ही ले लेवें इसमें सामाजिक, धर्म, साधना, भक्ति के सारे सूत्र मिलेंगे। बल्कि उन्हें तो लगता है कि इस प्रसंग पर शायद ही किसी संत या महात्मा ने लेखन या प्रवचन किए होंगे। महाराजश्री ने रामचरित मानस में उस हरेक वाक्या को बारीकी से अध्ययन करके जनमानस तक पहुंचाने के लिए इसका निर्माण किया है।

दीदी माँ ने कहा कि पुष्प वाटिका प्रसंग से लोगों को यह संदेश मिलता है कि हमें विश्व सुंदरी बनना है या श्रृंगार करके सुंदर ही बने रहना है। देह वाटिका में रावण की बहन शूर्पणखा है जो प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण दोनों को पाने की इच्छा रखती थी और उनका क्या हश्र हुआ सबको मालूम है। लेकिन पुष्प वाटिका में माता सीता ने न केवल प्रभु श्री राम के सिर्फ दर्शन ही किए थे बल्कि उन्हें पाया भी। यही अंतर तो है देह के दर्शन और देह के सौंदर्य में। श्रीलंका जलने का मतलब क्या है ? देह में आप जब सौंदर्य खोजेंगे तो यह देह तो आपको कभी भी छोड़कर चला जाएगा, पूरी लंका 400 एकड़ में थी लेकिन हनुमान जी ने उसे जला ही दिया और हमें इसी से समझ लेना चाहिए कि सुंदर बने रहने के लिए हम कितना भी मेकअप कर लें एक न एक दिन हमें इसे छोड़कर जाना ही है और मानस में बताया गया है कि यह शाश्वत सत्य है। जीवन की ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका हल ना निकाला जा सकें इसलिए महाराजश्री ने रामचरित मानस के हरेक प्रसंग को बारीकी से समझाने के लिए उसका निचोड़ निकालकर हमें सौंपा है।
इसी प्रसंग को लेकर उन्होने कहा कि माता सीता जी गौरी पूजन के बाद प्रभु के दर्शन के बाद वापस महल नहीं जाती बल्कि माता पार्वती का दर्शन करने के बाद दोबारा प्रभु के दर्शन के लिए जाती है। सीता जी ने अपने मन और हृदय से प्रभु राम का दर्शन कर लिया था। उन्होंने अपने माता – पिता के सामने प्रभु राम को पाने की इच्छा नहीं रखी बल्कि देवी अराधना करके माता पार्वती के सामने रखी थी। कामना है तो वह बुरा नहीं है लेकिन इसे पाने के लिए लाइसेंस की जरुरत होती है। प्रेम करने में भी कोई बुराई नहीं है यहां तक की आकर्षक दिखने के लिए मेकअप करना भी सही है लेकिन इसे पाने का मार्ग किस प्रकार मर्यादित होना चाहिए यह जानना हमारे के लिए बहुत जरुरी है। हमें ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए कि परिवार की परंपराओं व संस्कारों को तोड़ करके हम अपनी इच्छाओं को पूरी करें। इसमें समाज, व्यक्ति, माता-पिता की इच्छा होना भी बहुत जरुरी है।
