शोध कर्ता ही अच्छा शिक्षक होता है – प्रो गुरुचरण
रायपुर। महंत लक्ष्मी नारायण दास महाविद्यालय में डिपार्मेंट ऑफ कमर्स एवं प्रबंध संकाय के तत्वाधान में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के तौर पर प्रोफेसर गुरचरण सिंह स्कूल ऑ$फ मैनेजमेंट स्टडी पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला पंजाब एवं प्रोफेसर रण सिंह धालीवाल टूरिज्म हॉस्पिटैलिटी और होटल मैनेजमेंट पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला पंजाब ने शिरकत की। वहीं आयोजन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर देवाशीष मुखर्जी की विशेष उपस्थिति रही।
आयोजन के संबंध में विस्तार से जानकारी देते हुए प्रबंध संकाय के विभाग अध्यक्ष डॉ शांतनु पाल ने बताया कि दोनों वक्ताओं ने रिसर्च की नई तकनीक एवं प्रविधि पर विस्तार से जानकारी रखी। इन वक्ताओं ने बताया कि शोधकर्ता को शोध अध्ययन के दौरान समाज की आवश्यकता को सामने लाते हुए विश्लेषण के रिजल्ट रखना चाहिए ताकि उन परिणाम को धरातल पर उतर जा सके। आयोजन में प्रमुख वक्ता प्रोफेसर रण सिंह धालीवाल ने कहा की विकसित भारत 2047 में शोधकर्ताओं की क्या भूमिका होनी चाहिए, उन्होंने बताया कि लर्निंग की दो प्रमुख विधियां होती हैं जिसमें शिक्षा एवं लर्निंग सम्मलित है। उनका कहना था कि सीखने की प्रक्रिया द्वीचरणीय प्रक्रिया है इसमें उन्होंने एक ज्वलंत उदाहरण पेश कर यह बताया कि शोध को किसी सीमा में बांधकर सामने आने वाले परिणामों को सुंदरता के साथ पेश करना चाहिए इससे समाज को बहुत लाभ पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि डिक्शनरी में मीनिंग ढूंढते हैं जो वास्तविकता से कुछ अलग हटकर होते हैं इसलिए अर्थ बदल जाते हैं। एनसाइक्लोपीडिया में शब्दों के वास्तविक अर्थ मौजूद है जिसे एक शोधकर्ता को अध्ययन का विषय बनाना चाहिए। उनका कहना था कि विकास को किसी अर्थ में समझने की जगह अवधारणा को समझना होगा कि इसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तत्व शामिल होते हैं।
उन्होंने राजनेताओं के द्वारा कही गई बातों का उदाहरण के साथ प्रस्तुत किया गया और यह बताया गया कि राजनेता भ्रम में डालने वाले आंकड़े पेश कर मत बटोतने का काम करते हैं जबकि वास्तविकता अलग होती है। पत्रकारिता में काम करने वाले पेशेवर पत्रकारों को लेकर कहना था कि पत्रकार विषय वस्तु को सनसनी बनाकर प्रस्तुत करते हैं ताकि तत्कालीन सरकार का ध्यान आकर्षित कर समस्या का निराकरण कर जा सके लेकिन शोध करता इसी तथ्य को सुंदरता के साथ पेश कर समस्या के ऑब्जेक्टिव पर काम कर सकता है और बेहतर रिजल्ट सामने ला सकता है। विकास को किसी जीडीपी के तर्ज पर नहीं आंका जा सकता, विकास में गुणात्मकता और मात्रात्मकता तो शामिल होती है परंतु सुंदरता को भी देखना चाहिए, सीखना एक स्थाई ज्ञान की प्राप्ति है। उन्होंने बताया कि अकैडमिशियन और विशेषज्ञ एक्सपर्ट को मिलकर काम करने से समावेशी रिजल्ट दे सकते हैं, इस तरह से शोधकर्ता भी मात्रात्मकता की जगह गुणात्मकता को सामने लाकर शोध अध्ययन के रिजल्ट ले तो वह बहुत उपयोगी होगा।
आयोजन में प्रमुख वक्ता प्रोफेसर गुरु चरण सिंह ने भी विचार रखें और उच्च शिक्षा के उदाहरण के साथ यह बताया कि उच्च शिक्षा नंबर ऑ$फ डिग्री प्राप्त करना नहीं है बल्कि उसे सभी अध्ययन का बहु उपयोगी उपयोग मात्रात्मकता और उत्पादकता के साथ करने से समाज के लिए नए बिंदु बन सकते हैं। एक शोधकर्ता जिन जानकारी को अध्ययन के साथ सामने लाता है उस समाज में काफी बदलाव लाए जा सकते हैं न केवल समाज में बल्कि तमाम तरह की सरकारों के विकास उन्मुख कार्यों में भी उपयोग किया जा सकता है।
आयोजन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर देवाशीष मुखर्जी ने उद्घाटन उद्बोधन दिया और यह बताया कि शोध तत्कालीन आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। महाविद्यालय में रिसर्च सेंटर है जहां कई पंजीकृत कॉमर्स शोध अध्ययन के माध्यम से शोध का कार्य कर रहे हैं इसमें कुछ शोधकर्ताओं के कार्य नोटिफिकेशन तक पहुंचे हैं और उनके फाइंडिंग्स को विश्वविद्यालय ने स्वीकार कर लिया है। शोधकर्ता की मुख्य चुनौती विषय पर पकड़ होती है जो मुख्य रूप से सभी शोधकर्ताओं को समझना चाहिए तभी शोध को एक निश्चित परिणाम तक पहुंच पाएंगे। आयोजन में मंच का संचालन महाविद्यालय की पूर्व शोधकर्ता डॉ रूपम द्वारा किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक एवं शोधकर्ता सम्मलित हुए।