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जब तक भगवान के चरणों का दर्शन नहीं होता तब तक भगवान का दर्शन भी नहीं होता – मनोज कृष्ण शास्त्री

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रायपुर। श्रीमद् भागवत कथा में अमृत मंथन का प्रसंग आने पर कथावाचक मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि जब भगवान का दर्शन हो जाता है तो मन गदगद और प्रफुल्लित रहता है। मोहिनी अवतार में असुरों को भगवान के सौंदर्य का दर्शन हुआ और वे उसी में पूरे समय तक डूबे रहे, फिर उन्हें किसी भी चीज का ध्यान नहीं रहा। मोहिनी अवतार में जब भगवान वहां से अदृश्य हो जाते है तब गुरु शुक्राचार्य उनसे कहते है कि वे स्वयं नारायण थे जिसके सौंदर्य के वश में आप सब मोहित होकर सबकुछ भूल बैठे। जब तक भगवान के चरणों का दर्शन नहीं होता तब तक भगवान का दर्शन भी नहीं होता। जब गुरु की कृपा होती है तभी सबकुछ संभव हो सकता है, गुरु पर विश्वास होना चाहिए, यदि गुरु पर विश्वास नहीं है तो किसी पर भी विश्वास हो पाना असंभव है।

जब तक भगवान के चरणों का दर्शन नहीं होता तब तक भगवान का दर्शन भी नहीं होता - मनोज कृष्ण शास्त्री
मनोज शास्त्री जी ने कहा कि इस संसार में जो भी संबंध है वे सब माने हुए संबंध है, केवल भगवान से ही जो संबंध होता है वह मानने वाला नहीं होता, क्योंकि मनुष्य ने मान लिया है कि इससे मेरा संबंध है, उससे मेरा संबंध नहीं है, वह मेरे और तेरे के फेर में ही पूरी तरह से डूबा हुआ है, तो फिर भगवान से कैसे संबंध बना सकता है।
भादो महीने की विशेषता बताते हुए शास्त्री जी ने कहा कि इस मास में कन्हैया, गणेश, किशोरी जी, वामन और रामदेव का अवतार हुआ। वामन भगवान की महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि वामन भगवान राजा बलि के आधिपत्य से तीनों लोको को मुक्त कराने आए लेकिन वे राजा बलि की भक्ति से आसक्त हो गए। ब्राम्हण यदि दरवाजे पर भिक्षा लेने आए तो इससे बड़े सौभाग्य की बात और कुछ नहीं हो सकती क्योंकि स्वयं नारायण भिक्षा लेने आते है। जैसे वामन भगवान राजा बलि के यहां भिक्षा लेने ब्राम्हण का अवतार लेकर पहुंचे। उन्होंने कहा कि हास-परिहास, गाय पर हो रही हिंसा को रोकने, ब्राम्हण हिंसा, कन्या के विवाह के लिए तथा किसी का वध होते समय बोला गया झूठ कभी झूठ नहीं कहलाता, क्योंकि इससे सामने वाले का अनिष्ट नहीं होता।

जब तक भगवान के चरणों का दर्शन नहीं होता तब तक भगवान का दर्शन भी नहीं होता - मनोज कृष्ण शास्त्री
शास्त्री जी ने कहा कि दान अपने सामथ्र्य के अनुसार करना चाहिए, धन वाला धन का वास्तविक मालिक नहीं होता, धन का वास्तविक मालिक धन देने वाला होता है। कथाओं को बेचना आने परमात्मा को बेचे जैसा है। उन्होंने कहा कि भागवत कथा का व्यापार नहीं होना चाहिए, यदि भागवत कथा के बदले आपने किसी से धन लिया है तो वह परमात्मा को बेचने जैसा है। साधन के बिना साध्य की प्राप्ति नहीं हो सकती, साध्य प्राप्ति होने पर साधन की चिंता नहीं होती। वैसे ही भगवान की भक्ति है।
गुढिय़ारी हनुमान मंदिर के वार्षिकोत्सव में वृंदावन के राकिशन शर्मा जी के निर्देशन में आयोजित रास लीला का भी श्रद्धालुजन बड़ी संख्या में उपस्थित होकर आनंदित हो रहे है। तीन दिनों से रास लीला में भगवान की जीवंत झांकियों का वर्णन नृत्य नाटिकाओं के माध्यम से किया जा रहा है।

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