धर्म जो कहता है वही माने,अपने से चेष्टा न करें – रमेश भाई ओझा
रायपुर। सनातन धर्म में ईश्वर की सत्ता को स्वीकारा गया है। जो कुछ है वो ईश्वर के चलते ही है। भगवान के होने से सब कुछ होता है। दुनिया में सभी धर्म ईश्वर को स्वीकारते हैं। फिर भी कई लोग ऐसे हैं जो जीवन के बारे में सोंचते हैं और अपने ढंग से समझने की चेष्टा करते हैं। धर्म से मनुष्य का कल्याण होता है। कुछ करना और कुछ करने से बचना दोनों ही धर्म है,जैसे दान करना धर्म है और चोरी न करना भी धर्म है। धर्म जो कहता है वही मानना चाहिए, लेकिन हम जो मानते हैं वही धर्म है, ये मान लेना बहुत ही खतरनाक है। इसलिए धर्म है उसको माने। हरि अनंत-हरि कथा अनंता,श्रीमद्भागवत कथा पूरी जिंदगी न पूरी होगी,न कथा समझ आएगी और न ही समझा पायेंगे। इसलिए वाणी की सार्थकता जितना समझा सके धारण करें। धन धनी बना सकता है, दानी नहीं। भक्त की भक्ति भगवान को बांध लेती है, इसलिए मानसी सेवा को श्रेष्ठ बताया गया है।
जैनम मानस भवन में बुधवार को सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के विश्रांति दिवस पर भगवताचार्य श्री रमेश भाई ओझा ने बताया कि धर्म की व्याख्या बहुत ही विशाल है जिससे अभ्युदय हो लोक में, विकास हो, भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति हो यहां तक कि मृत्यु के बाद परलोक में भी तुम्हारा कल्याण हो, ये जिससे होता है उसे धर्म कहते हैं। भक्तों की भक्ति से वशीभूत होकर भगवान अवतरित होते हैं। जैसे राम रूप, कृष्ण रूप। इस संदर्भ में उन्होने बताया कि निर्गुण निराकार ब्रम्हा, सगुण सरोकार परमात्मा और सगुण साकार भगवान है।
उन्होने बताया कि हकीकत में जगत में जगदीश ही है, लेकिन हमे ज्ञान नहीं हैं इसलिए दृष्टि से केवल संसार दिखाई पड़ता है। सोने की नथनी, कंगना, बाली तो दिखाई पड़ता है। दरअसल इन डिजाइनो में इतना ज्यादा फंस जाते हैं कि कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता। जो दृष्टि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दी थी, वो दृष्टि जिसको मिल गई और जिसको अनुभव हो जाता है कि सिवाय परमात्मा के कुछ है नहीं,जिसको बोध वो गया वो बुद्ध हो गया और जिसको नहीं वह बुद्धू रह गया। रूप, नाम, लीला व धाम के संदर्भ में उन्होने बताया कि रूप-इससे स्वरूप का दर्शन होता है। नाम-रूप का स्मरण-संस्मरण होता है,लीला-भगवान की लीलाओं का श्रवण करो व मन से दर्शन करो तथा धाम- जहां भगवान प्रगट हुए, लीला हुई उस स्थान को धाम कहते हैं। सगुण साकार से जुड़ी ये चार बातें महत्वपूर्ण है।
धन धनी बना सकता है दानी नहीं
हम किसी की शरण में जा सकते हैं,शिष्य बन सकते हैं। लेकिन हम किसी को गुरु बनाने वाले कौन होते हैं। त्याग और दान दो अलग चीज है,त्याग में तुम स्वतंत्र हो और दान जब स्वीकार करने वाला होगा तब होगा। इसका ज्यादा महत्व है। दान करते समय दान देने वाला लेने वाले को प्रणाम करता है कि इसे स्वीकार कर तुमने मुझे दानी बनाया। धन धनी बना सकता है दानी नहीं।
श्रेष्ठ है मानसी सेवा
मन, वचन, कर्म से भगवान की सेवा करो। नाचते, गाते, मुस्कराते करो भगवान की सेवा। सेवा का मतलब सिर्फ पूर्ति समझने वाले भी लोग हैं जिन्हे पूजा करना भी बोझ लगता है। ज्ञान, धर्म, भक्ति का वातसल्य प्रेम देखना है तो माता यशोदा का देखें। भाव जगत ही तो है भक्ति मार्ग। भक्त की भक्ति भगवान को बांध लेता है। प्रेम का बंधन और भक्ति का यह आनंद मुक्ति का मार्ग भी बताता है।
नम हो गई आंखें
मिरानी ग्रुप द्वारा आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का बुधवार को अंतिम दिवस था। कथा भी सुबह से दोपहर तक कई घंटे तक चली लेकिन भगवताचार्य श्री रमेशभाई ओझा के श्रीमुख से ऐसी रसवाणी बह रही थी कि श्रद्धालुओं को लग रहा था आखिर इतनी जल्दी क्यों बीत गए सात दिन और जब श्री ओझा ने भजन गाए…हरि आ जाओ एक बार-मुझसे क्यों रूठ गए हो-तुमसे मिले युग बीत गए..मन की सुध बिसराते हो-रह रह कर तडफ़ाते हो ..तो जैनम मानस भवन में बैठे श्रद्धालु भावुक हो गए और आंखों से आंसू बहने लगे। तब भाईश्री ने बताया कि हरि कथा- हरि कथा अनंता। जितने भी दिन चाहो कम पड़ जाएंगे। यह पूरी नहीं होने वाली। इसलिए सात दिन में ही जितना कुछ आप लोगों ने सुना हैं आत्मसात करें तो इस कथा की सार्थकता पूरी हो जायेगी। अंत में मिरानी परिवार के द्वारा आरती व वंदना के बाद सप्तदिवसीय भागवत कथा का समापन हो गया।