नीरस जीवन को सरस बना दे वह है कथा – रमेश भाई ओझा
रायपुर। जो तुम्हारी रस में स्थिति कर दे वही कथा है। रस मतलब श्रीकृष्ण। नीरस जीवन को सरस बना दे वह है कथा। यदि रस नहीं रहे तो नीरसता आ जाती है और जीवन में तनाव उत्पन्न हो जाता है। यदि श्रोताजन कथा में रस का अनुभव नहीं कर रहे हंै तो ऊंघने लगते हैं और कुछ देर बाद ताली बजाना शुरु कर देते हैं मतलब कथाकार के लिए संकेत हो जाता है कि अब बंद भी करो। रस आता है तो मधुर कृष्ण आते हैं। उस रस का अनुभव किया तो वह आनंद से भर जायेगा। रस तो रासगरबा में भी मिलता है, आज रासगरबा में कथा से ज्यादा भीड़ जुटती है लेकिन व सामान्य रस है, भागवत कथा से मिला रस अलौलिक होता है।
जैनम मानस भवन में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन भगवताचार्य श्री रमेश भाई ओझा ने बताया कि भगवान का नाम सबसे मधुर होता है। इस मधुर नाम गोविंद, माधव का जाप करो। अलौकिक सुख जो आनंद दे उसका जाप करो। ब्रम्हानंद क्षणिक नहीं हैं। सदगुरु के पास हैं ब्रम्हानंद। यही असली सुख है। कथा में से -क -का अर्थ है रस,मतलब श्रीकृष्ण। वहीं मथुरा के कंस के संदर्भ में बताया कि जो सुखों का नाश करे,दुखी करे वही कंस है। अभिमानी की महत्वाकांक्षा बहुत मजबूत होता है। मै,मेरा और तेरा का भेद ही अहंकार है। ये जो भेद हैं यही है माया है, इसका विषयानंद क्षणिक होता है इसलिए कि इसका परिणाम है विष। इसलिए रसास्वरूप भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति व जाप करें।
उन्होने बताया कि मन और बुद्धि अत्यंत महत्वपूर्ण है.भगवान मन और बुद्धि मांगते है इसलिए बुद्धि को भगवान से कनेक्ट करो। दुनिया में बुद्धिमान तो बहुत हैं, लेकिन जिनकी बुद्धि भगवान से कनेक्ट हो ऐसे कम लोग हैं। आजकल बढ़ते साइबर क्राइम और डिजिटल जैसे विषयों को उल्लेखित करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे करने वाले भी बुद्धिमान हैं, लगता है इन्होने डिग्री हासिल कर रखी है। लेकिन ऐसे बुद्धिमान को अपने कृत्य के लिए एक न एक दिन जेल में जाना पड़ता है। ऐसी बुद्धि व बुद्धिमान का क्या मतलब? तय आपको करना है कि आप कौन सी बुद्धि से जुडऩा चाहोगे। रामायण को संदर्भित करते हुए उन्होने मंथरा की बुद्धि का जिक्र किया कि ऐसी बुद्धि रामराज्य कराने वाली नहीं बल्कि राम वनवास कराने वाली है। उसकी बुद्धि भगवान से नहीं जुड़ी थी। इसलिए अपनी बुद्धि को भगवान से कनेक्ट करो। दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो सुख-शांति नहीं चाहता हो? इसी का दूसरा नाम है श्रीराम। कौन है ऐसा जो भगवान का प्रेमी नहीं है।
चाह नहीं, राह गलत थी
रामायण के संदर्भ में उन्होंने बताया कि भाई रावण सीता को चाहता है और बहन शुर्पनखा राम को चाहती है। चाह हमारी भी वहीं लेकिन उनकी चाहत को हम गलत ठहराते हैं। चाह उनकी भी गलत नहीं थी, राह गलत थी। जो राह उन्होने चुना वह गलत था। रावण सोंचा साधु बनुंगा तो शांति मिलेगी..हरण के लिए। शुर्पनखा ने सोंचा सुंदरी बनूंगी..वरण के लिए। लेकिन रावण नकली साधु बना, यदि वह असली साधु बनता तो जीवन में त्याग होता और तब भोग नहीं योग होता और जीवन में शांति होती। रावण के जीवन में कोई सदगुरु नहीं था। ठीक वैसे ही राक्षसी शुर्पनखा ने सुंदरी बनने के लिए कपट का मार्ग चुना। कपट और छल से परमात्मा नहीं मिलते। परमात्मा तो मिलते शबरी जैसे निष्कपट प्रेम से।
कथा को अनुष्ठान के रूप में लें
श्री ओझा ने बताया कि जीवन में सद्कर्म (सेवा) व सत्कर्म करना चाहिए। कथा को धार्मिक मनोरंजन नहीं बल्कि अनुष्ठान के रूप में लेना चाहिए। ये कही सुनी बात नहीं बल्कि भागवत कथा में जो विधि लिखी गई है उसी का पालन करते व करवाते हैं। कथा के दौरान ब्रम्हचर्य का पालन करें, सात्विक रहकर एक समय भोजन करें, भूमिश्यन करें, संयम करें कुछ दिन के लिए। समय, शक्ति, पैसा उतना ही लगना है लेकिन आनंद असीमित है। कथा की मर्यादा, गरिमा, व्यास पीठ की मर्यादा हम लोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा।