रायपुर के मल्लूराम ने दी थी दारा सिंह को चुनौती, पंडित नेहरू भी हो गए थे इनकी पहलवानी के कायल

रायपुर। मल्लूराम शर्मा उर्फ मल्लू पहलवान की पहलवानी का रायपुर में हर कोई दिवाना था। आज भी उनके करतब के किस्से अमिट है। मल्लूराम ने रुस्तमे हिंद स्व.दारा सिंह को कुश्ती की चुनौती दी थी। 1946 में एक ईरानी की चुनौती पर साइंस कॉलेज रायपुर में सीना फूलाते ही लोहे की मोटी जंजीर को तोड़कर शरीर से अलग कर दिया था। 1950 के आस-पास देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रायपुर आगमन पर मल्लूराम ने उनके समक्ष जमीन पर लेटकर हाथी का पैर सीने पर रखवाया था। इस करतब को पंडित नेहरू के साथ ही भीड़ में मौजूद सभी सांसे रोके देखते ही रह गए। ऐसे थे मल्लूराम, उनका सम्मान छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी व डॉ. रमन सिंह तक कर चुके हैं।
ऐसे ही मल्लूराम कई हैरतअंगेज करतब जैसे छाती पर लोहे की छड़ रखवाकर उसे छेनी से हथौड़े की मार से दो टुकड़े कराना। दांत से ढाई मन के लोहे के पाइप को उठाना, जल से भरी गुंडी को दांतों से उठाना, सिर पर बोतल व बोतल के ऊपर नारियल रखकर उसे लाठी के एक वार से फुड़वाना, छुरी की नोंक से काजल लगाना आदि किया करते थे। उनकी ख्याति को सुनकर फ्रांस की पत्रिका हेल्थ एंड स्ट्रैंथ ने उनकी तस्वीर को उनकी खूबियों के वर्णन सहित प्रकाशित किया था। पैदा होने के समय से मल्लूराम के दोनों पैर की ऐडी मुड़ी हुई थी। इसके बाद भी उनका हौंसला कम नहीं हुआ। बगैर जूते के तो वह चल नहीं सकते थे लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी बनने नहीं दिया। उन्हें किसी भी कोटे में नौकरी नहीं मिली लेकिन कभी निराश नहीं हुए। उन्होंने कापा में नौकरी की। मिलिट्री छावनी टूट गई तो सन 1946 में शासकीय साइंस महाविद्यालय रायपुर में स्टेनोग्राफर के पद पर नौकरी शुरू की। 1980-84 में विधि कॉलेज में लिपिक रहे। महंत कॉलेज में कार्यकर सेवानिवृत्त हुए। कार्य के साथ अपनी पहलवानी को मल्लूराम ने बखूबी साधा। पुरानी बस्ती के जैतूसावमठ अखाड़े में उनकी पहलवानी की तूती बोलती थी। 1941 में 20 वर्ष की आयु से पहलवानी शुरू किए थे। 5 फीट 11 इंच के मल्लूराम जब अपना 48 इंच का सीना फुलाते थे तो वह 56 इंच का हो जाता था। उम्र के आखिरी पड़ाव में भी 100 नंबर की बनियान ही उन्हें आरामदायक लगती थी।
ऐसी ही भीड़ में एक 10 वर्षीय लड़की अक्सर 20 वर्षीय मल्लूराम की पहलवानी का करतब देखने आया करती थी, जो उनकी जीवन साथी बनी। आज 10 मई को दोनों की शादी की 78वीं सालगिरह है। आज दोनों इस दुनिया में नहीं है। मल्लूराम शर्मा का निधन 24 अगस्त 2016 को और उनकी धर्मपत्नी शांता शर्मा का निधन 7 अप्रैल 2017 को हुआ। लिली चौक में मल्लूराम की धर्मपत्नी स्व.शांता शर्मा मायका था। अक्सर पुरानी बस्ती के जैतूसाव मठ अखाड़े में होने वाले करतब को देखने परिवार के साथ पहुंचती थीं। विशेषकर नागपंचमी पर लोग मल्लूराम शर्मा के करतब देखने अखाड़ा पहुंचते थे। कई अनोखे व जोखिम भरे शक्ति प्रदर्शन मल्लूराम किया करते थे। सीने पर 10 मन का पत्थर रखकर घन से फोड़ना प्रमुख था। सन 1950 में तत्कालीन कलेक्टर एमपी दुबे की उपस्थिति में उन्होंने अपने सीने पर पत्थर रखकर फुड़वाया था। उनके सहयोगी मनराखन लाल हथौड़े से पत्थर तोड़ते थे,जब तक पत्थर टूट ना जाए। प्रदर्शन के दौरान मल्लूराम के सीने पर फोड़ा गया पत्थर आज भी पुरानी बस्ती निवासी अनंत यदु के दरवाजे पर रखा हुआ देखा जा सकता है। पत्थर महाराजबंध तालाब से उठा कर लाया गया था। मल्लूराम शर्मा ने यह करतब रायपुर में कई स्थानों में दिखाया था। राजकुमार कॉलेज में भी उन्होंने इस कला का प्रदर्शन किया। महंत लक्ष्मीनारायण दास कॉलेज के प्रोफेसर आरके कपूर, स्व.शारदाचंद तिवारी, हिम्मतलाल मानिकचंद आदि प्रबुद्धजनों ने प्रदर्शन का आयोजन करा कर मल्लूराम को प्रोत्साहित किया।
मल्लूराम शर्मा के बड़े भाई स्व.रेवाप्रसाद उपाध्याय भी मंझे हुए पहलवान थे। उनकी प्रेरणा से ही मल्लू ने पहलवानी शुरू की थी। बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए मल्लूराम ने कभी रायपुर के बाहर अपने बल का प्रदर्शन नहीं किया। मल्लूराम शर्मा जीवनभर महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्य किए। विशेषकर ब्राह्मण समाज की लड़कियों की शिक्षा के लिए जोर दिया क्योंकि आमतौर पर पहले लड़के की जल्दी शादी कर दी जाती थी। अपनी बेटी को भी पढ़ा लिखाकर काबिल बनाया, उनकी बेटी किरणमई तिवारी भी नगर निगम एजुकेशन ऑफिसर के पद से सेवानिवृत्त हुई।